Rani Kamlapati- देश का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज नए रूप में बनकर तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 नवंबर 2021 को इसका लोकार्पण किआ। देश का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज अब रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार के नोटिफिकेशन जारी होते ही स्टेशन का नाम बदल दिया गया है।

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इसमें कहा गया है कि 16वीं सदी में भोपाल क्षेत्र गोंड शासकों के अधीन था। रानी कमलापति ने अपने जीवन भर बहादुरी के साथ अतिक्रमणकारियों का सामना किया था। नए बने इस रेलवे स्टेशन पर अब यात्रियों को शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, हॉस्पिटल, मॉल, स्मार्ट पार्किंग, हाई सिक्योरिटी समेत कई आधुनिक सुविधाएं मिलेंगी।

Rani Kamlapati कौन थी?

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद चकला गिन्नौर के गौंड राजा निजाम शाह की रानी कमलापति (Rani Kamlapati) थीं। निजाम की हत्या के बाद वह अपने बेटे नवलशाह के साथ भोपाल आ गईं। बताया जाता है कि दोस्त मोहम्मद खान रानी को हासिल करना चाहता था। लालघाटी पर रानी कमलापति के बेटे नवल शाह और खान का युद्ध हुआ।

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इसमें 16 वर्षीय नवल शाह शहीद हो गया। नवल शाह की मृत्यु की सूचना देने के लिए मनुआभान टेकरी से काला धुआं किया गया। इसके बाद कमलापति ने अपने महल से छोटे तालाब में जलसमाधि ले ली, ताकि उन्हें कोई छू न पाए। 300 साल पहले बने सात मंजिला कमलापति महल का कुछ हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। 1989 से यह महल भारतीय पुरातत्व संरक्षण के अधीन है।

रानी कमलापति का इतिहास (Rani Kamlapati History)

रानी कमलापति (Rani Kamlapati) के इतिहास की अगर बात करें तो यह शुरू होती है उस वक्त करीब भोपाल से 50 किलोमीटर दूर स्थित गिन्नौर गढ़ नामक अति छोटी लेकिन महत्वपूर्ण रियासत के राजा निजाम शाह से। निजाम शाह गौढ़ राजा थे और कहा जाता है कि उनकी सात पत्नियां थी। इनमें से एक थी रानी कमलापति।

यह राजा की सबसे प्रिय पत्नी थी और प्रिय हो भी क्यों नहीं, क्योंकि कहा जाता है कि रानी परियों की तरह खूबसूरत थीं। उस वक्त एक कहावत काफी प्रचलित थी कि ‘ताल है तो भोपाल ताल और बाकी सब हैं तलैया। रानी थी तो कमलापति और सब हैं गधाईयां.’। 

आज का भोपाल उस समय एक छोटा सा गांव हुआ करता था, जिस पर निजाम शाह की हुकूमत थी। आपने एक कहावत तो सुनी ही होगी कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरो में कहा दम था। ऐसा ही कुछ हुआ निजाम शाह के साथ। दरअसल,  निजाम शाह के भतीजे आलम शाह का बाड़ी पर शासन था और उसे अपने चाचा निजाम शाह से काफी ईर्श्या थी।

ऐसा कहा जाता है कि उसे निजाम शाह की दौलत, संपत्ति और कमलापति की खूबसूरती से ईर्श्या थी। कहते हैं कि आलम शाह रानी कमलापति पर मौहित हो गया था और उसने रानी से अपने प्यार का इजहार भी किया था, लेकिन रानी ने उसे ठुकरा दिया था।  

एक शाम भतीजा आलम शाह अपने चाचा निजाम शाह को दावत पर बुलाता है और षडयंत्र से उनके खाने में जहर मिलाकर उनकी हत्या कर देता है। इन षडयंत्रों खुद बचाने के लिए रानी कपलापति अपने एक मात्र पुत्र नवल शाह को गिन्नोर गढ़ से भोपाल के रानी कमलापति महल लेकर आ जाती हैं। निजाम शाह की मृत्यु के बाद रानी कमलापित बेहद दुखी और बेचैन रहती थीं। वह अपने शौहर की मौत का बदला लेना चाहती थीं, लेकिन फौज और पैसे की कमी के कारण वह मजबूर थीं। 

इसी दौरान दोस्त मोहम्मद खान की एंट्री होती है। दोस्त मोहम्मद खान एक तनख्वादार मुलाजिम था जो लोगों पैसे लेकर बदले में उनकी मदद किया करता था। वह अब तक जगदीशपुर पर अपनी हुकूमत कायम कर चुका था। रानी कमलापति और दोस्त मोहम्मद की भी एक दिलचस्प कहानी है।

दोस्त मोहम्मद कभी-कभी भोपाल के बड़े तलाब मछलियों का शिकार करने आया करते थे और उस वक्त यह तालाब रानी की जागीर हुआ करती थी, जहां मछलियों का शिकार करना मना था। जब यह बात रानी तक पहुंची तो उन्होंने आदेश दिया कि अगर अगली बार दोस्त मोहम्मद शिकार करने आए तो उन्हें उनके सामने पेश किया जाए। 

कुछ दिनों बाद दोस्त मोहम्मद फिर शिकार करने आते हैं और उनको सूचना मिलती है कि आपको रानी के सामने पेश होना होगा। दोस्त मोहम्मद बेखौफ होकर रानी के दरबार पहुंचते हैं। उन्हें यहां बुलाने की वजह भी बताई गई।

इसके विपरीत रानी कमलापति, दोस्त मोहम्मद के मर्दाना व्यक्तिव और शान-औ-शौकत देखकर असल शिकायत भूलकर उनके करीब आना शुरू करती हैं। जब रानी को पता चलता है कि दोस्त मोहम्मद जगदीशपुर पर कब्जा कर चुके हैं तो रानी अपना असल मुद्दा बयां करती हैं और अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए दोस्त मोहम्मद से मदद मांगती हैं। 

ऐसा कहा जाता है कि दोस्त मोहम्मद एक लाख रुपए के बदले रानी की मदद के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके बाद दोस्त मोहम्मद बाड़ी के राजा पर हमला कर उनकी हत्या कर देता है। दोस्त मोहम्मद के इस काम से रानी बहुत खुश होती हैं, लेकिन तय सौदे के मुताबिक वह 1 लाख रुपए नहीं दे पाती हैं।

बदले में वह दोस्त मोहम्मद को भोपाल का एक हिस्सा दे देती हैं। जब दोस्त मोहम्मदभोपाल पर अपना शासन जामने निकले तो उनका युद्द रानी कमलापति के बेटे नवल शाह से हुआ। ऐसा कहा जाता कि उस युद्ध में इतना खून वहां था कि वह धरती लाल हो गई थी और आज उसी जगह को लालघाटी के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में नवल शाह को हार का सामना करना पड़ा और दोस्त मोहम्मद का भोपाल पर एकाधिकार हो गया था। 

हबीबगंज रेलवे स्टेशन की शुरुआत कब हुई थी?

अरबी भाषा में हबीब का अर्थ होता है प्यारा और सुंदर। भोपाल के नवाब की बेगम ने यहां की हरियाली और झीलों के बीच बसे इस गांव का नाम हबीबगंज रखा था।

जब रेलवे लाइन बिछाई गई, तब इटारसी-भोपाल के बीच बुधनी, बरखेड़ा, औबेदुल्लागंज और मंडीदीप स्टेशन बनाए गए थे। इसके एग्रीमेंट में था कि यह रेल लाइन ब्रॉडगेज होगी।

1947 में आजादी के बाद भारतीय रेल का 55 हजार किलोमीटर का नेटवर्क था। 1952 में मौजूदा रेल नेटवर्क को एडमिनिस्ट्रेटिव पर्पज के लिए 6 जोन में डिवाइड किया गया। इसके बाद कई स्टेशन बनाए गए। इनमें हबीबगंज भी शामिल था। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का निर्माण 1979 में किया गया।

मध्यप्रदेश के 1000 साल के इतिहास पर लिखी गई किताब ‘चौथा पड़ाव’ में रेलवे स्टेशन की कहानी भी है। इसके मुताबिक भोपाल नवाब परिवार की मिल्कियत वाली जमीनों में 122.36 किलोमीटर रेलवे लाइन भी थी। होशंगाबाद (नर्मदा नदी के पुल) से भोपाल तक 70.80 किमी रेल लाइन के लिए बेगम शाहजहां ने 1 नवंबर 1884 को जमीन दी थी। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के साथ एग्रीमेंट किया था। इसके बाद भोपाल स्टेट रेलवे बनाया गया था। इसमें बेगम शाहजहां ने 50 लाख रुपए दान दिए थे।

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