पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास:- (Panchayati Raj Vyavastha)

पंचायत हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान है | यह हमारी गहन सूझ-बुझ के आधार पर व्यवस्था-निर्माण करने की क्षमता की परिचायक है | यह हमारे समाज में स्वाभाविक रूप से समाहित स्वावलम्बन, आत्मनिर्भरता एवं संपूर्ण स्वंतत्रता के प्रति निष्ठा व लगाव  का घोतक है | शुरू -शुरू में , ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ काल से भी पहले, पंचायत किसी क्षेत्र में चुने पांच प्रतिष्ठित व्यक्तियों की एक निकाय होती थी |

इसका निश्चित क्षेत्र एक गाँव हुआ करता था | गाँव इसलिए कि यह एक स्वाभाविक और मूल इकाई थी | गाँव इसलिए भी कि इसके ऊपर की सभी इकाइयों का रूप बदलता रहता | देश और राज्य की सीमाएं बड़ी-छोटी होती रहीं | भाषा और सत्ता के आधार पर देश और राज्य की व्यवस्था में परिवर्तन होता रहा, पर गाँव आज भी एक स्थिर इकाई बना रहा | भौगिलिक एवं सामाजिक दोनों तरह से यह इन सभी बदलावों से अछुता रहा |

पंचायत के पंच के रूप में पांच व्यक्तियों को चुनने के लिए भी एक निश्चित मापदंड था | वे गाँव के ऐसे पांच प्रतिष्ठित व्यक्ति होते जो अपने अलग-अलग गुणों के लिए जाने जाते थे | वे पांच गुणों वाले व्यक्ति थे-सोच-समझ कर काम करने वाले, दूसरों की रक्षा में हमेशा आगे आने वाले, किसी भी काम को व्यवस्थित ढंग से करने वाले, किसी भी शारीरिक श्रम वाले काम में अधिक रूचि रखने वाले, तथा वे जो घर-गृहस्थी त्याग कर गाँव के बाहर सन्यासी की तरह जीना पसंद करते थे | ऐसे पांच अलग-अलग गुणों वाले बुजुर्ग व्यक्तियों को समाज में आदरभाव से देखा जाता |

ये पंचायत के रूप में गाँव में रहने वाले लोगों के बीच का मतभेद दूर करने, गाँव की रक्षा, गाँव का विकास, समुदायपरक समाधान निकलते जो सबको मान्य होता | मुगलों के शासनकाल तक अनवरत चलती रही | परन्तु अंग्रेजों के आते ही इसमें रुकावट आने लगी | उन्हें इसके स्वायत्त इकाई का स्वरुप बिल्कुल अनुकूल नहीं लगा अतः इसके साथ उन्होंने छेड़-छाड़ शुरू कर दी |

आजादी के बाद पंचायती राज व्यवस्था का गठन:-

  • सन् 1952 में भारत सरकार ने ग्रामीण विकास पर विशेष ध्यान दिया और इसके लिए केन्द्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई | 2 अक्टूबर, 1952 को इस उद्देश्य के साथ ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ प्रारम्भ किया गया | इस कार्यक्रम के अधीन खण्ड(ब्लॉक) को इकाई मानकर इसके विकास हेतु सरकारी कर्मचारियों के साथ सामान्य जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास तो किया, लेकिन जनता को अधिकार नहीं दिया गया | जिससे यह सरकारी अधिकारियों तक ही सीमित रह गया |
  • 2 अक्टूबर, 1953 को ‘राष्ट्रीय प्रसार सेवा’ को प्रारम्भ किया गया | यह कार्यक्रम भी असफल रहा जिसके बाद समय-समय पर पंचायतों के विकास के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया |
  • इसके बाद 1957 में निर्वाचित प्रतिनिधियों को भागीदारी देने तथा प्रशासन की भूमिका केवल कानूनी सलाह देने तक सीमित रखने से सम्बन्धित सुझाव दिए | पंचायती राज का शुभारम्भ भी यहीं से माना जाता है जब लोगों को स्थानीय शासन में भागीदारी देने की बात की गई |
  • इसी क्रम में पंचायती राज व्यवस्था का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 2 अक्टूबर 1959 को नागौर जिले के बगदरी गाँव से किया |
  • आधुनिक भारत में राजस्थान को पहला राज्य होने का गौरव है, जहाँ पहली बार पंचायती राज की स्थापना की गई | 2 सितंबर 1959 को राजस्थान सरकार ने ‘पंचायत समिति एवं जिला परिषद अधिनियम-1959’ पारित कर पंचायती राज व्यवस्था की शुरूआत की |
पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास (Panchayati Raj Vyavastha)

भारत में केवल नागालैंड को छोड़कर लगभग सभी राज्यों में पंचायती राज प्रणाली सुचारू रुप से चल रही है, कहीं एकस्तरीय, कहीं द्विस्तरीय, तो कहीं त्रिस्तरीय | जैसे- आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, इत्यादि राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था संचालित की जा रही है | हरियाणा, तमिलनाडु में द्विस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू है | जबकि केरल, मणिपुर, सिक्किम, त्रिपुरा जैसे राज्यों में एक स्तरीय ग्राम पंचायतें लागू है | इसके अलावा पेसा कानून-1996 के अंतर्गत मेघालय, नागालैंड और मिजोरम जैसे राज्यों में एक स्तरीय जनजातीय परिषद् लागू है |

समितियों का गठन और उनकी भूमिका:-

इसके बाद देश में पंचायती राज को सशक्त बनाने, व्यवस्थित विकास की जिम्मेदारी देने और इसे लोकप्रिय बनाने के लिए कई समितियों का गठन किया गया | इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण बलवंत राय मेहता समिति, अशोक मेहता समिति, सिंधवी समिति और वी.एन गाडगिल समिति थी, इन्हीं की सिफारिशों के आधार पर पंचायती राज अधिनियम-1992 बन सका | सबसे पहले वर्ष 1957 में योजना आयोग के द्वारा ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ और ‘राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम’ के अध्ययन के लिए ‘बलवंत राय मेहता समिति’ का गठन किया गया |

बलवंत राय मेहता समिति:-

सामुदायिक विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में 1957 ई. में एक समिति का गठन किया गया, इस समिति ने सामुदायिक विकास कार्यक्रम और सत्ता की विकेंद्रीकरण का अध्ययन कर पंचायती राज के त्रिस्तरीय मॉडल को पेश किया |

इस समिति ने ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खंड (ब्लॉक) स्तर पर पंचायत समिति और जिला स्तर पर ज़िला परिषद् बनाने का सुझाव दिया | इस समिति की सिफारिशों को 1 अप्रैल 1958 को मान्यता दी गई और इसी के आधार पर 2 अक्टूबर 1959 में राजस्थान के नागौर जिले से पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ किया गया | इसके बाद 1959 में ही आंध्र प्रदेश ने पंचायती राज अधिनियम को पारित किया | परन्तु वित्तीय व्यवस्थाओं और चुनाव में एकरुपता न होने के कारण यह असफल रहा |

अशोक मेहता समिति:-

बलवंत राय मेहता समिति की कमियों को दूर करने और एक सुव्यवस्थित पंचायती राज स्थापित करने के लिए सरकार ने अशोक मेहता समिति का गठन 1977 में किया | इस समिति ने 1978 में 132 सिफारिशें प्रस्तुत की | इस समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली को द्विस्तरीय स्तर करने का सुझाव दिया |

  1. जिला परिषद,
  2. मंडल पंचायत

मेहता समिति ने अपनी सिफारिशों में ग्राम पंचायतों की जगह मंडल पंचायत की स्थापना की सिफारिश की |

जी.वी.के. राव समिति:-

जी.वी.के. राव की अध्यक्षता में 1985 में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए प्रशासनिक प्रबंधन विषय पर एक समिति का गठन किया गया | इस समिति ने भी सत्ता की विकेंद्रीकरण की बात की | राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद, जिला स्तर पर जिला विकास परिषद, मंडल स्तर पर मंडल पंचायत तथा ग्राम स्तर पर ग्रामसभा की सिफारिश की |

एल. एम. सिंघवी समिति:-

राजीव गाँधी सरकार ने 1986 में एल. एम. सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण में वृद्धि और पंचायतों का फिर से सशक्तिकरण करना था |

वी.एन. गाडगिल समिति:-

वर्ष 1988 में वी.एन. गाडगिल की अध्यक्षता में पंचायतों को और बेहतर बनाने के लिए इस समिति का गठन किया गया |

64वाँ संशोधन विधेयक:-

गाडगिल और एल.एम.सिंघवी समितियों की सिफारिशों के फलस्वरूप ही तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने जुलाई 1989 में 64वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक संसद में पेश किया ताकि पंचायती राज संस्थानों को और अधिक सशक्त बनाया जा सके | लोकसभा ने इस विधेयक को अगस्त 1989 में पारित कर दिया, लेकिन कांग्रेस के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण यहाँ विधेयक पास नहीं हो सका | वर्ष 1989 में 64वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में असफल होने के बाद पीवी नरसिम्हा राव सरकार के दौरान 1992 के 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों को संवैधानिक दर्जा मिला | विधेयक को संसद द्वारा पारित होने के बाद 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली और 24 अप्रैल, 1993 से इसे देशभर में लागू कर दिया गया | इसके फलस्वरूप 24 अप्रैल को देशभर में ‘राष्ट्रीय पंचायत दिवस’ के रूप में मनाया जाता है |

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