School Based Assessment: विद्यालय आधारित आकलन

विद्यालय आधारित आकलन (SBA) शिक्षण अधिगण की प्रकिया के दौरान समग्र रूप से सीखने के प्रतिफलों के सन्दर्भ में निर्दिष्ट दक्षताओं को प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करता है | विद्यालय आधरित आकलन “सीखने के लिए आकलन “ की व्यपाक प्रकिया में निहित है |

विद्यालय आधरित आकलन शिक्षकों आकलन शिक्षकों को बच्चे की सीखने की प्रगति का निरीक्षण करने , समय पर प्रतिक्रिया देने और बचे सीखने की कठिनाइयों को दूर करने में मदद करने के लिए सहायता प्रदान करता है | विद्यालय आधारित आकलन(SBA) सुक्ष्म स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी में मदद करता है | आकलन इस तरीके से किया जाना चाहिए जिससे सिख्सको पर बोझ न पड़े और उनके शिक्षण अधिगम को प्रभावित किया जा सके |

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (CCE) के क्रियान्वन में कमियों के कारन उत्पन्न हुई विकृतियो और कमियों को दूर करने के लिए विद्यालय आधारित आकलन (SBA) को अगली पीढ़ी के आकलन के रूप में प्रस्तावित किया गया है |

यह एक बार में बाहरी (बोर्ड ) परीक्षा और आंतरिक परीक्षा के संयोजन सीसीई और एसबीए के रूप में अनुक्रम में चौथा हो सकता है |

विद्यालय आधारित आकलन

इस मॉड्यूल में विद्यालय आधारित आकलन (एस.बी.ए.) से संबंधित विभिन्न पहल शामिल हैं, जिन पर विद्यालयी स्तर पर सभी हितधारकों, विशेषकर शिक्षकों द्वारा विचार किया जाना महत्वपर्ण है। यह मॉड्यूल परीक्षा के रूप में आकलन की पष्‍ठृ भमिू और देश में सतत एवं व्यापक मलू्‍यांकन (सी.सी.ई.) और विद्यालय आधारित आकलन(एस.बी.ए.) को उजागरकरता है। यह इस बात का सझुाव देता है कि बच्चों में परीक्षण और परीक्षा की बाहरी, कें द्रीकृतऔर कठोर प्रक्रियाओ से संबधित भय के तत्व को कम करने के लिए विद्यालय-आधारित आकलन में पाठ्यचर्या और परीक्षा में सधुार कै से लाया जाए। मानदड औं र आकलन के उद्शदे्य पर प्रकाश डालते हुए मॉड्यूल उन रणनीतियों का विवरण देता है, जिनका उपयोग विद्यालय आधारित आकलन के लिए किया जा सकता है। यह मॉड्यूल विभिन्न हितधारकों को, विशेष रूप से शिक्षकों को, पढ़ाने और विद्यालय आधारित आकलन में शिक्षण और आकलन के लिए बाल-केंद्रित दृष्‍टिकोण का उपयोग करने में मदद करता है।

अधिगम के उद्देश्य:

  • विद्यालय आधारित आकलन की उत्पत्त‍ि और महत्‍व को समझने में
  • आकलन के लिए शिक्षार्थी-केंद्रित दृष्‍टिकोणों से परिचित होने में
  • आकलन प्रक्रियाओ के साथ शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के एकीकरण की सुविधा पाने में
  • आकलन के उद्देश्य से प्रासंगिक विषय क्षेत्रों में संदर्भ-आधारित उदाहरण विकसित करने में

पृष्ठभूमि (Background):

स्वतंत्रता के समय भारत में शिक्षा की व्यवस्था मखु्य रूप से परीक्षा-आधारित थी और लिखित परीक्षाओ में उनके प्रदर्शन के आधार पर लोगों को वर्गीकृत किया जाता था। भारत में शिक्षा की प्रणाली को लोगों की ज़रूरत और आकांक्षा के अनसुार तैयार करने के लिएराष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) ने व्यापक आकलन के लिए तर्क दिया, जिस के तहत परीक्षाओं में विद्यार्थियों का प्रदर्शन मापने हेत पु ाठ्यचर्या और पाठ्य सहगामी, दोनों पहलओु को शामिल किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) ने आकलन की शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में एक अभिन्न अग के रूप में कल्पना की, जो बच्चे के विकास और उन्नति का प्रमाण प्रदान करता है। उद्शदे्यों को रेखांकित करते हुए यह कहा गया कि शिक्षण की अवधि में पाठ्यचर्या और पाठ्य सहगामी, दोनों ही पहलओु में विद्यार्थियों के विकास और उन्नति का सतत और व्यापक मलू्‍यांकन किया जाए।

सतत और व्यापक मलू्‍यांकन (सी.सी.ई.) की अवधारणा का उपयोग भारत में विद्यालय शिक्षा के साहित्य में 30 वर्षों से अधिक समय से किया जा रहा है। इसका उपयोग विद्यालय में शिक्षण-अधिगम की प्रक्रियाओ के फलस्वरूप बच्चों के विकास और उन्नति को समझने के लिए किया जाता है। प्रत्येक विद्यालय, संस्था और व्यक्‍तिगत रूप से सी.सी.ई. की व्यापक योजना के स्वतंत्र उपयोग के कारण, लोगों के मन में कई विकृतियाँ/भ्रम उत्पन्न हुए हैं,जो योजना के साथ-साथ प्रणाली की विश्‍वसनीयता को नुकसान पहुँचाते हैं। उनमें से कुछ हैं—

  • शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया पर परीक्षाओ का हावी होना।
  • केवल संज्ञानात्मक पहलओु पर ध्यान केंद्रित करना और व्यवहार के सकारात्मक औरमनो-गत्‍यात्‍मक पहलओु की उपेक्षा करना
  • शिक्षकों पर अभिलेख तैयार करने और रिकॉर्डरखने पर अत्यधिक काम करने के कारण भार बढ़ना |
  • रटंत प्रणाली पर ज़ोर देना।
  • परीक्षा की कई तकनीकों के यांत्रिक उपयोग से प्रतिफलजनित कुप्रथाएँ|
  • शिक्षकों में रुचि की कमी और विद्यार्थियों की लापरवाही के कारण शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होना।
  • शिक्षण व्यवसाय और विद्यालय प्रणाली की विश्‍वसनीयता का नुकसान |
  • अभिभावकों का सी.सी.ई. स्वरूप से संतुष्ट न होना।

सी.सी.ई. में अविश्‍वास के मखु्य कारण इस प्रकार थे—

  • ‘सतत’ शब्द को ‘आवर्ती’ के रूप में गलत समझा गया था। आकलन को ‘शिक्षण’ और ‘शिक्षा’ के साथ समेकित किया जाना चाहिए था, लेकिन इस पर क्‍लास टेस्‍ट, इकाई टेस्‍ट, वार्षिक परीक्षा का प्रभुत्व था। परीक्षा का अत्‍यधिक प्रयोग शिक्षा की परूी प्रक्रिया पर हावी हो गया था।
  • ‘व्यापक’ शब्द का उल्लेख बच्चे के विकास और उन्‍नति के सभी पहलओु के आकलन के रूप में किया जाना था, जिसमें बच्चे के विकास और उन्‍नति के भावात्‍मक और मनो- गत्‍यात्‍मक पहलओु का आकलन हो, लेकिन शिक्षकों के पास उपयक्‍तु उपकरण न होनेके कारण ऐसा नहीं हो सका और इसलिए सी.सी.ई. कार्यान्वयन में व्यापक पहलओु के आकलन की बात अपनी समग्रता में अधूरी ही रह गई|
  • ‘आकलन’ शब्द को ‘माप’ शब्द का पर्याय माना जाता था। भौतिक दनिुया में जिस तरह की वैधता और विश्‍वसनीयता के साथ माप की जाती है, सी.सी.ई. में मलू्‍यांकन भी इसी तरह की सटीकता और शुद्धता के साथ बच्चे के विकास और उन्‍नति को मापने के लिए किया गया था।जबकि व्यवहारगत पहलओु के आकलन (अंतराल मापनी)
    की तुलना में भौतिक दनिुया में आकलन की प्रकृति/अनपुात मापनी अलग होती है।
  • एक अन्य महत्वपर्ण मुद्दा , आकलन में कई उपकरणों और तकनीकों के उपयोग से संबंधित था। यहाँ तक कि सी.सी.ई. में भी आकलन हेतु केवल कागज़-पेंसिल परीक्षा के उपयोग का वर्चस्व था |

इन सभी गंभीर मुद्दों के बावजद सी.सी.ई. योजना के इरादों पर किसी को संदेह नहीं था।इसलिए सी.सी.ई. योजना के क्रियान्वयन पहलुओं को फिर से देखना वांछनीय माना गया।सी.सी.ई. के क्रियान्वयन में कमियों के कारण उत्पन्न विकृतियों और कमियों को दूर करने के लिए विद्यालय आधारित आकलन को अगली पीढ़ी के आकलन के रूप में
प्रस्तावित किया गया है। यह सी.सी.ई. और अब एस.बी.ए के रूप में वाह्य और आंतरिक परीक्षा के संयोजन से एक ही वाह्य (बोर्ड) परीक्षा होने के क्रम में चौथा हो सकता है।

विद्यालय आधारित आकलन (एस.बी.ए.):

विद्यालयों आधारित आकलन को ऐसे परिभाषित किया जा सकता है—

  • आकलन, जो शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया के दौरान समग्र रूप से सीखने के प्रतिफलों के संदर्भ में निर्दिष्‍ट दक्षताओ को प्राप्‍त करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • ‘अधिगम हेत आकलन’ के व्यापक शैक्षिक दर्शन के भीतर, शिक्षण और अधिगम कीप्रक्रिया में निहित आकलन।
  • विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों का आकलन।

विद्यालय आधािरत आकलन की मुख्य विशेषताएँ:

  • शिक्षण-अधिगम और आकलन को एकीकृत करना
  • शिक्षकों पर प्रलेखन, रिकॉर्डिंग, रिपोर्टिंग का कोई भार नहीं है
  • बाल-केंद्रित और गतिविधि आधारित शिक्षण शास्त्र
  • विषयवस्‍तु याद रखने के बजाय (अधिगम प्रतिफल आधारित) योग्यता विकास पर ध्यान देना
  • आकलन के दायरे को स्व-आकलन और साथियों द्वारा आकलन के अलावा शिक्षक द्वारा आकलन के माध्यम से व्यापक बनाना
  • भय रहित, तनाव मक्‍तु और बढ़ी हुई भागीदारी/सहभागिता
  • उपलब्धि के आकलन के बजाय/और/के रूप में सीखने के आकलन पर ध्यान
  • शिक्षकों और व्यवस्था पर विश्‍वास बढ़ाना
  • बच्चों में आत्मविश्‍वास बढ़ाना

आकलन— क्या, क्यों और कैसे :

आकलन का मखु्य उद्शदे्य बच्चों की सीखने की ज़रूरतों को समझने के लिए उन्हें अपनी दक्षता बढ़ाने में सहायता देना है और यदि सीखने में कोई परेशानी है तो उसे दरू करने में उसकी मदद करना है। आकलन के ‘क्यों, क्या और कै से’ को समझने के लिए, हम इस पर एक नज़र डालते हैं—

– आकलन के मापदंड क्या हैं?

– इससे कौन-सा उद्शदे्य पराू होगा?

यह उपखंड निम्न मापदंडों पर विस्तार से बात करता है— सीखने के प्रतिफल आकलन की मखु्य विशेषताएँ और विवरण सहित इसका उद्देश्य कि कक्षा और विद्यालय आधारित आकलन रणनीतियों का उपयोग करके बच्चों के सीखने और विकास का निरीक्षण कैसे कर सकते हैं।

यह भी पढ़े :-

निष्‍ठा : स्‍कूल प्रमखों और शिक्षकों की समग्र उन्‍नति के लिए राष्‍ट्रीय पहल -प्रशिक्षण पैकेज Module 4 .pdf

अधिक जानकारी प्राप्त करने कि लिए आवेदक हमारी वेबसाइट http://enterhindi.com/की मदद ले सकते है |

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