Vat Savitri Vrat 2022 : 

आज सोमवती अमावस्या के शुभ संयोग में वट सावित्री व्रत भी मनाया जा रहा है | अखंड सुहाग की कामना से प्रतिवर्ष सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है |

इस साल यह तिथि काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि कई सालों बाद 30 मई को सोमवती अमावस्या का शुभ संयोग बन रहा है | सोमवती अमावस्या के दिन किया गया व्रत,पूजा-पाठ,स्नान व दान आदि का अक्षय फल मिलता है |

इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग,पतिप्रेम एवं पतिव्रत धर्म का स्मरण करती हैं एवं अपने पति के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करती हैं | देखा जाए तो इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है | वृक्ष होंगे तो पर्यावरण बचा रहेगा और तभी जीवन संभव है |

व्रत का महत्व:-

मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से लंबी आयु,सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है | यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक,पापहारक,दुःखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है | अग्नि पुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है अतः संतान प्राप्ति के लिए इच्छुक महिलाएं भी इस व्रत को करती हैं |

वट वृक्ष की धार्मिक मान्यता:-

इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है | ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा,तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शिव का निवास होता है |

इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं |अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्वर माना गया है | वट वृक्ष की छाँव में ही देवी सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था | इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियां अचल सुहाग की प्राप्ति के लिए इस दिन वरगद के वृक्षों की पूजा करती हैं |

पूजाविधि:-

वट सावित्री व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान के बाद सुंदर आभूषण और वस्त्र पहन कर इस वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की मूर्ति रखकर विधि-विधान से पूजा करें |

कच्चे दूध और जल से वृक्ष की जड़ों को सींचकर वृक्ष के तने में सात बार कच्चा सूत या मोली लपेटकर यथाशक्ति परिक्रमा करें | लाल वस्त्र,सिन्दूर,पुष्प,अक्षत,रोली,मोली,भीगे चने,फल और मिठाई सावित्री-सत्यवान के प्रतिमा के सामने अर्पित करें |

साथ ही इस दिन यमराज का भी पूजन किया जाता है | पूजा के उपरान्त भक्तिपूर्वक हाथ में भीगे हुए चने लेकर सत्यवान-सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए | ऐसा करने से परिवार पर आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं,घर में सुख-समृद्धि का वास होता है |

इस व्रत की पूजा में भीगे हुए चने अर्पण करने का बहुत महत्व है क्यों कि यमराज ने चने के रूप में ही सत्यवान के प्राण सावित्री को दिए थे | सावित्री चने को लेकर सत्यवान के शव के पास आईं और चने को सत्यवान के मुख में रख दिया,इससे सत्यवान पुनः जीवित हो गए |

वट सावित्री व्रत मुहूर्त:-

  • अमावस्या तिथि शुरू- मई 29, रविवार को दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से
  • अमावस्या तिथि समाप्त  – मई 30, सोमवार को सांय 04:59 तक

आज इस मुहूर्त में ना करें वट सावित्री व्रत की पूजा- आराधना

ज्योतिष में किसी भी शुभ कार्य,पूजा, आराधना और अनुष्ठान में शुभ मुहूर्त का विशेष ध्यान रखा जाता है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किया का गया कार्य हमेशा सफल होता है। लेकिन कुछ दिन के अशुभ मुहूर्त भी होते हैं जिसमें पूजा-पाठ या शुभ कार्य का शुभारंभ वर्जित माना जाता है।

ऐसे में आज वट सावित्री व्रत में पूजा-उपासना करते समय कुछ मुहूर्त का ध्यान में रखकर ही पूजा पाठ करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि राहुकाल,यमगण्ड,आडल योग,दुर्महूर्त और गुलिक काल को शुभ योगों में नहीं गिना जाता है। इस दौरान पूजा-पाठ, आराधना और शुभ कार्यों को करना वर्जित माना गया है।

राहुकाल- 07:08 AM से 08:51 AM
यमगण्ड- 10:35 AM से 12:19 PM
आडल योग- 05:24 AM से 07:12 AM
दुर्मुहूर्त- 12:46 PM से 01:42 PM
गुलिक काल- 02:02 PM से 03:46 PM
वर्ज्य- 01:05 AM, मई 31 से 02:52 AM,

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