STARS Project : STARS का पूरा नाम (Strengthening Teaching-Learning And Results For States Program- STARS) है। STARS, छह भारतीय राज्यों में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता और शासन में सुधार करने हेतु विश्व बैंक समर्थित एक परियोजना है।
स्टार्स परियोजना, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय (Ministry Of Education- MOE) के तहत एक केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना के रूप में लागू की जाएगी। परियोजना में सम्मिलित छह राज्य- हिमाचल प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान हैं। इस परियोजना से 1.5 मिलियन स्कूलों में 10 मिलियन शिक्षक और 250 मिलियन स्कूली छात्र लाभान्वित होंगे।
Stars Scheme केंद्र सरकार द्वारा आरंभ की गई है। जिसके माध्यम से राज्यों के टीचिंग लर्निंग और परिमाण को मजबूत बनाए जाने का सरकार द्वारा लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इस योजना को केंद्र प्रायोजित योजनाओं के रूप में लागू किया जाएगा। Stars Scheme के अंतर्गत एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्थान के रूप में एक राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, PARAKH की स्थापना भी की जाएगी।
इस योजना का कार्यान्वयन शिक्षा मंत्रालय के पास होगा। राज्यों में शिक्षण, सीखने और परिणामोंको बेहतर बनाने की शिक्षा मंत्रालय की स्टार्स परियोजना (Strengthening Teaching-Learning And Results For States (STARS) Project) के क्रियान्वयन को वित्तीय मदद प्रदान करने के लिए आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) और विश्व बैंक के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं। स्टार्स परियोजना की कुल लागत 5718 करोड़ रुपए है।
स्टार्स (STARS) परियोजना :
- स्टार्स परियोजना ‘राज्य कार्यक्रमों के लिए शिक्षण-अभिगम और परिणाम की सुदृढ़ता’ (Strengthening Teaching-learning and Results for States Program: STARS) का संक्षिप्त रूप है।
- स्टार्स परियोजना का प्रमुख उद्देश्य भारत के छह राज्यों (यथा-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, मध्य प्रदेश और केरल) में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता एवं शासन में सुधार लाना है।
- विश्व बैंक के मुताबिक, इस परियोजना से भारत के स्कूलों में मूल्यांकन प्रणाली को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इस परियोजना से स्कूलों के शासन और विकेन्द्रीकृत प्रबंधन को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
- स्टार्स परियोजना को केन्द्र सरकार की योजना ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के माध्यम से लागू किया जायेगा।
- स्टार्स परियोजना के द्वारा उपर्युक्त 6 राज्यों के लगभग 15 लाख स्कूलों के 6 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 25 करोड़ छात्रों और एक करोड़ शिक्षकों को फायदा पहुँचेगा।
- स्टार्स परियोजना निम्नलिखित उपायों के माध्यम से वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करेगी-
- भारत के उपर्युक्त 6 राज्यों में शिक्षा सेवाओं को जिला स्तर पर प्रत्यक्ष निष्पादित किया जायेगा।
- शिक्षा सेवा से संबंधित विभिन्न हितधारकों (विशेषरूप से अभिवावकों एवं विद्यार्थियों) की माँगों को संबोधित किया जायेगा।
- स्टार्स परियोजना अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु शिक्षकों को ट्रेनिंग आदि के माध्यम से सशक्त करेगी।
- स्टार्स परियोजना के माध्यम से भारत की मानव पूँजी के विकास हेतु शैक्षिक निवेश पर अधिक बल दिया जायेगा।
- स्टार्स परियोजना विद्यार्थियों के लर्निंग आऊटकम की चुनौतियों पर विशेष बल देगी।
स्टार्स (STARS) परियोजना का उद्देश्य :
स्टार्स परियोजना का प्रमुख उद्देश्य भारत के छह राज्यों (यथा-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, मध्य प्रदेश और केरल) में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता एवं शासन में सुधार लाना है। विश्व बैंक के मुताबिक, इस परियोजना से भारत के स्कूलों में मूल्यांकन प्रणाली को बेहतर बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इस परियोजना से स्कूलों के शासन और विकेन्द्रीकृत प्रबंधन को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। स्टार्स परियोजना को केन्द्र सरकार की योजना ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के माध्यम से लागू किया जायेगा। स्टार्स परियोजना के द्वारा उपर्युक्त 6 राज्यों के लगभग 15 लाख स्कूलों के 6 से 17 वर्ष की आयु के लगभग 25 करोड़ छात्रों और एक करोड़ शिक्षकों को फायदा पहुँचेगा।
स्टार्स (STARS) परियोजना हाइलाइट्स :
परियोजना का नाम | स्टार्स परियोजना 2022 |
किस ने लांच की | भारत सरकार |
उद्देश्य | शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाना। |
लाभार्थी | भारत के विद्यार्थी। |
आधिकारिक वेबसाइट | जल्दी लॉन्च की जाएगी |
परियोजना की शरुआत | 2021 |
स्टार्स (STARS) परियोजना के अंतर्गत आने वाले राज्य :
स्टार्स (STARS) परियोजना के अंतर्गत फिलहाल निम्नलिखित राज्यों को शामिल किया गया;-
- हिमाचल प्रदेश
- राजस्थान
- महाराष्ट्र
- मध्य प्रदेश
- केरला
- ओडीशा
स्टार्स (STARS) परियोजना के महत्वपूर्ण बिंदु :
- शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास की कुंजी होती है और शिक्षकों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
- भारत ने बीते कुछ वर्षों में देश भर में शिक्षा की पहुँच में सुधार करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं, इन्ही कदमों का परिणाम है कि देश में स्कूल जाने वाले छात्रों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली है। आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2004-05 और वित्तीय वर्ष 2018-19 के बीच स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या 219 मिलियन से बढ़कर 248 मिलियन हो गई है।
- हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में यूनेस्को (UNESCO) ने कहा था कि भारत समेत विश्व के अन्य देशों को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि किसी भी पृष्ठभूमि का कोई भी बच्चा शिक्षा के अधिकार से छूट न सके।
एसडीजी और स्टार्स परियोजना
- सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) का चौथा लक्ष्य शिक्षा से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने के अवसर पर बल प्रदान किया जायेगा। इस प्रकार स्टार्स परियेाजना सतत विकास लक्ष्य को भी पाने में मदद करेगी।
- उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2015 में (एमडीजी की अवधि समाप्त होने पर) अपनी 70वीं बैठक में ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा’ के तहत सदस्य देशों द्वारा 17 विकास लक्ष्यों अर्थात् एसडीजी को अंगीकृत किया था।
- एसडीजी 1 जनवरी, 2016 से प्रभाव में आ गये थे और यूएनडीपी की निगरानी में अगले 15 वर्षों तक अर्थात् 2030 तक प्रभाव में रहेंगे।
पीसा (PISA) और स्टार्स परियोजना
- स्टार्स परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के आंकलन का कार्यक्रम (Programme for International Student Assessment-PISA) में भारत की भागीदारी में भी सहायता करेगा।
- पीसा (PISA), आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) का शिक्षा से संबंधित एक वैश्विक कार्यक्रम है। ओईसीडी, इसे अपने सदस्य राष्ट्रों एवं गैर-सदस्य राष्ट्रों दोनों में ही संचालित करता है।
भारत में शिक्षा क्षेत्र में चुनौतियाँ
- निम्न साक्षरता दरः आजादी के समय देश की केवल 12 फीसदी आबादी साक्षर थी जो 2011 में 74 फीसदी हो गई, लेकिन 84 फीसदी के वैश्विक औसत से भारत अब भी काफी पीछे है।
- शिक्षा की गुणवत्ता में कमीः आधारभूत ढाँचे की कमी और अन्य समस्याओं के चलते शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है और छात्रों के सीखने के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। 7 साल की उम्र के 50 फीसदी बच्चे शब्द नहीं पहचानते जबकि 14 साल तक की उम्र के करीब इतने ही बच्चे गणित के सामान्य सवाल भी हल नहीं कर पाते।
- शिक्षा के प्रति रुझान में कमीः स्कूल की पढ़ाई करने वाले छात्रों में से कुछ ही कॉलेज पहुँच पाते हैं। भारत में उच्च शिक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन कराने वाले छात्रों का अनुपात काफी कम है।
- शिक्षकों की भारी कमी और अनियमितताः इस समय देश में शिक्षकों की भारी कमी है। शिक्षकों की कमी के अलावा उनकी नियमित तौर पर ट्रेनिंग भी नही होती है जिससे शिक्षण गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- मध्याह्न भोजन आदि स्कीम का प्रभावी न होनाः सरकार बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए प्राथमिक व उच्च प्राथमिक बच्चों के लिए प्रतिदिन व्यंजन सूची के अनुसार भोजन की व्यवस्था करती है। परन्तु धरातल पर यह भ्रष्टाचार और अनियमितता की भेंट चढ़ जाता है।
- शिक्षकों का गैर-शैक्षणिक कार्यों में संलिप्तताः सरकारी विद्यालयों में तैनात अध्यापक साधारणतः पल्स पोलियो, जनगणना, चुनाव जैसे तमाम गैर शैक्षिक कार्यों में लगे रहते हैं जिससे वे कक्षा में निर्धारित समय में पाठ्यक्रम को समाप्त नहीं कर पाते हैं।
- आधारभूत शिक्षण व्यवस्था की कमी और स्कूलों की दूरीः यूनीसेफ की रिपोर्ट बताती है कि देश के 30 फीसदी से अधिक विद्यालयों में पेयजल की व्यवस्था ही नहीं है। साथ ही 40 से 60 फीसदी विद्यालयों में खेल के मैदान तक नहीं हैं। इसके अलावा कई गाँव, आज भी प्राथमिक शिक्षा की पहुँच से बाहर हैं।
- ड्रॉप-आउट रेटः सर्व शिक्षा अभियान के बाद प्राथमिक स्तर पर नामांकन अनुपात सौ फीसदी के करीब पहुँच चुका है, लेकिन स्कूल छोड़ने की दर ज्यादा होने के चलते लगभग 57 फीसदी छात्र ही प्राथमिक शिक्षा और लगभग 10 फीसदी सेकेंडरी शिक्षा पूरी करते हैं।
- उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ताः संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो भारत की उच्चतर शिक्षा व्यवस्था अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर आती है लेकिन जहाँ तक गुणवत्ता की बात है दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
- रूरल-अर्बन डिवाइडः गाँवों में डिजिटल इंफ्रॉस्ट्रक्चर शहरों के मुकाबले काफी कमजोर है। इसके कारण कोविड-19 महामारी में ऑनलाइन शिक्षण प्रभावित हो रहा है।
सरकारी प्रयास
डिजिटल ई शिक्षा पहल
- भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। 10 जुलाई, 2017 को भारत सरकार ने ‘ई-पाठशाला-स्वयं प्रभा’ की शुरूआत की। भारत सरकार को आशा है कि इस पहल से 2020 तक छात्रों के सकल नामांकन का अनुपात 24.5% से बढ़कर 30% तक पहुँच जाएगा।
स्वयं प्रभा
- इसके तहत जीसैट-15 उपग्रह के माध्यम से सरकार कुछ शैक्षणिक कार्यक्रम टीवी पर प्रसारित कर रही है।
ई-पाठशाला
- एनसीईआरटी की किताबें ‘ई-पाठशाला’ पहल के तहत मुफ़्त में ऑनलाइन उपलब्ध है। इस पहल से गरीब छात्र भी आसानी से अध्ययन कर सकते हैं, जो एनसीईआरटी की किताबें नहीं खरीद पा रहे हैं।
शिक्षकों के लिए दीक्षा पोर्टल
- केन्द्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्रलय (एचआरडी) ने 5 सितंबर 2017 को शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय डिजिटल माध्यम दीक्षा पोर्टल (diksha.gov.in) की शुरूआत की थी।
- इस पोर्टल पर शिक्षकों को ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीकों से प्रशिक्षण प्राप्त होता है।
- इस पोर्टल के जरिये मानव संसाधन विकास मंत्रलय शिक्षकों को नई और आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ प्रदान करता है।
एन.पी.टी.ई.एल. कार्यक्रम
- एन.पी.टी.ई.एल. कार्यक्रम के अंतर्गत इंजीनियरिंग विषयों और मानविकी विषयों के लिए वेब और वीडियो पाठड्ढक्रम विकसित किए जा रहे हैं।
सुझाव
- डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए साक्षरता दर में वृद्धि करने की जरूरत है।
- यद्यपि भारत ने शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए अनेक प्रयास किए हैं लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाये हैं। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता को बढ़ावा दिया जाए जैसे- शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं का विकास, शिक्षकों को आधुनिक शिक्षा पद्धति के लिए अलग से प्रशिक्षण देने, साथ ही विकसित देशों के साथ शिक्षा क्षेत्र में समझौते भी किये जा सकते हैं।
- बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहन की जरूरत है, साथ ही स्कूल या कॉलेजों की पठन-पाठन प्रणाली इस प्रकार तैयार करने की जरूरत है जिससे बच्चों में शिक्षा के प्रति रुझान को बढ़ाया जा सके।
- बढ़ती जनसंख्या और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार को चाहिए कि वह शिक्षकों की कमी को जल्द से जल्द दूर करें।
- शिक्षकों के गैर शैक्षणिक कार्यों में संलिप्तता को समाप्त करने के लिए कड़े नियम के साथ-साथ एक अलग से निगरानी निकाय बनाने की आवश्यकता है।
- शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी आधुनिक कक्षाएँ बनाने की जरूरत है। बिजली की आपूर्ति को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिससे पठन-पाठन के दौरान कोई परेशानी न हो।
- गाँवों में डिजिटल शिक्षा से संबंधित बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है तथा शिक्षा जगत से जुड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए इसे समाप्त करने की आवश्यकता है।
- डिजिटल शिक्षा को तभी साकार किया जा सकता है जब इसके लिए शिक्षा बजट को और बढ़ाया जाए।
- ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
- शिक्षा क्षेत्र में रुझान बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम को लागू किए जाने की जरूरत है तथा जो छात्रवृत्ति योजनाएँ केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा चलाईं जा रहीं हैं उनके प्रभावी कार्यान्वयन की भी आवश्यकता है।
निष्कर्ष
- शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक विकास पर महत्त्वपूर्ण और निर्णायक प्रभाव डालती है। यह देश के मानव संसाधन की उत्पादक क्षमता में वृद्धि करने व देश में उपलब्ध भौतिक संसाधनों की समतापूर्ण वितरण की संभावना बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि शिक्षा क्षेत्र के संसाधनों को और अधिक सुदृढ़ करे।