Bhopal Gas tragedy, भोपाल गैस कांड:-

मध्य प्रदेश के भोपाल में 2-3 दिसम्बर 1984 यानी आज से 37 साल पहले दर्दनाक हादसा हुआ था | इतिहास में जिसे भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas tragedy), भोपाल गैस त्रासदी का नाम दिया गया है | भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई और कई लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं |

भोपाल गैस कांड में मिथाइल आइसो साइनाइट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था | जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था | मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है, फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 बताई गई थी | 

मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी, जबकि अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग रिसी हुई गैस से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे | उस भयावह घटनाक्रम को फिर से याद करने पर भुक्तभोगियों की आंखें आज भी डबडबा जाती हैं |

कड़ाके की सर्द रात थी, लोग चैन की नींद सो रहे थे | 2 दिसंबर, 1984 को भोपाल की छोला रोड स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने में भी रोज की तरह अधिकारी, कर्मचारी और मजदूर प्लांट एरिया में अपना काम संभाले हुए थे | लेकिन किसी को क्या पता था कि आज की रात हजारों लोग मौत की नींद सो जाएंगे | 2 दिसंबर, 1984 की रात प्लांट से गैस का रिसाव हुआ और त्रासदी की दास्तां बन गई |

2-3 दिसंबर 1984 की उस भयानक रात का सच:- Bhopal Gas tragedy

Bhopal Gas Tragedy
  • 2 दिसंबर, 1984 रात 8 बजे : यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी, जहां सुपरवाइजर और मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे |
  • 2 दिसंबर, 1984 रात 9 बजे :करीब आधा दर्जन कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकल पड़ते हैं |
  • 2 दिसंबर, 1984 रात 10 बजे : कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई, टैंकर का तापमान 200 डिग्री तक पहुंचा और गैस बनने लगी |
  • 2 दिसंबर, 1984 रात 10:30 बजे : टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी | वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया |
  • 3 दिसंबर, 1984 रात 12:15 बजे : वहां मौजूद कर्मचारियों को घबराहट होने लगी | वाल्व बंद करने की कोशिश की गई लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा |
  • 3 दिसंबर, 1984 रात 12:50 बजे : वहां आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी |
  • 3 दिसंबर, 1984 रात 1:00 बजे : पुलिस के सतर्क होने से पहले भगदड़ मचने लगी | लेकिन कारखाने के संचालक ने कहा- कोई रिसाव नहीं हुआ है |
  • 3 दिसंबर, 1984 रात 2:00 बजे : कुछ देर बाद तो अस्पताल परिसर में ऐसे मरीजों की भीड़ उमड़ आई |
  • 3 दिसंबर, 1984 रात 2:10 बजे : कारखाने से खतरे का सायरन बजने और तबियत बिगड़ने की वजह से लोग घरों से बाहर भाग रहे थे | पूरे शहर में गैस फैल चुकी थी |
  • 3 दिसंबर, 1984 रात 4:00 बजे : नींद के आगोश में समाए हजारों लोग पल भर में जहरीली गैस के मरीज बन चुके थे | इस बीच गैस रिसाव पर काबू पा लिया गया |
  • 3 दिसंबर, 1984 सुबह 6:00 बजे : पुलिस की गाड़ियां क्षेत्र में लाउडस्पीकर से चेतावनी देने लगीं | शहर की सड़कों पर हजारों गैस प्रभावित लोग या तो दम तोड़ते जा रहे थे या जान बचाने के लिए बदहवास होकर इधर-उधर भाग रहे थे |

त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की भी हो चुकी है मौत :-

34 बरस पहले 1984 में 2 दिसंबर की रात और 3 दिसंबर की सुबह भोपाल की वो काली रात जिसने हजारों लोगों को दबे पांव मौत के आगोश में सुला लिया | भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस रिसाव से समूचे शहर में मौत का तांडव मच गया |

इस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड के मुख्य प्रबंध अधिकारी वॉरेन एंडरसन रातोंरात भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका रवाना हो गए थे | हालांकि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन मुखिया और इस त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की भी मौत 29 सिंतबर 2014 को हो चुकी है |

इस हादसे पर 2014 में फिल्म ‘भोपाल ए प्रेयर ऑफ रेन’ का निर्माण किया गया | त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई दिव्यांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए | यह भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और बच्चे यहां कई असामान्यताओं के साथ पैदा हो रहे हैं |

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