कौन हैं अनिल बोकिल?
महाराष्ट्र के लातूर में जन्मे 53 साल के बोकिल ‘अर्थक्रांति प्रतिष्ठान’ के फाउंडर हैं। वे मूल रूप से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। बाद में उन्होंने इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की और पीएचडी भी हासिल की। इंजीनियरिंग के साथ-साथ अनिल मुंबई में कुछ वक्त तक डिफेंस सर्विस से जुड़े रहे। फिर उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में खुद का कुछ करने का सोचा और औरंगाबाद लौटकर इंडस्ट्रियल टूल्स और पार्ट्स की फैक्ट्री लगाई। वे रेयर किस्म के पार्ट्स बनते थे।
- महाराष्ट्र के लातूर में जन्मे 53 साल के बोकिल ‘अर्थक्रांति प्रतिष्ठान’ के फाउंडर हैं। वे मूल रूप से मैकेनिकल इंजीनियर हैं। बाद में उन्होंने इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की और पीएचडी भी हासिल की। इंजीनियरिंग के साथ-साथ अनिल मुंबई में कुछ वक्त तक डिफेंस सर्विस से जुड़े रहे। फिर उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में खुद का कुछ करने का सोचा और औरंगाबाद लौटकर इंडस्ट्रियल टूल्स और पार्ट्स की फैक्ट्री लगाई। वे रेयर किस्म के पार्ट्स बनते थे।
वे जिस अर्थक्रांति प्रतिष्ठान को चलाते हैं, वह पुणे की इकोनॉमिक एडवाइजरी संस्था है। इसमें चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और इंजीनियर शामिल हैं। अर्थक्रांति प्रपोजल को संस्थान ने पेटेंट कराया है।
अनिल बोकिल वही शख्स हैं, जिन्होंने केंद्र सरकार को नोटबंदी का आइडिया दिया था। वे पेशे से इंजीनियर हैं और मुंबई में कुछ वक्त तक डिफेंस सर्विस से जुड़े रहे हैं।
8 नवंबर 2016 की आधी रात से केंद्र सरकार ने 500 और 1000 रु. के नोट बंद करने का एलान किया था। इससे तीन साल पहले पुणे के अर्थक्रांति प्रतिष्ठान के अनिल बोकिल ने बीजेपी नेताओं को नोटबंदी का प्रपोजल दिया गया था। उस वक्त मोदी गुजरात के सीएम थे। बोकिल को मोदी से मुलाकात के लिए सिर्फ 9 मिनट का वक्त दिया गया था, लेकिन नोटबंदी का प्रपोजल जानने के बाद नरेंद्र मोदी ने इसमें इंटरेस्ट दिखाया और पूरे 2 घंटे तक चर्चा की।
नोटबंदी के पांच साल बीत जाने के बाद जानिए अनिल बोकिल से कि क्या पूरा हुआ सरकार का नोटबंदी का मकसद:
8 नवंबर 2016 की आधी रात से केंद्र सरकार ने 500 और 1000 रु. के नोट बंद करने का एलान किया था। इससे तीन साल पहले पुणे के अर्थक्रांति प्रतिष्ठान के अनिल बोकिल ने बीजेपी नेताओं को नोटबंदी का प्रपोजल दिया गया था। उस वक्त मोदी गुजरात के सीएम थे। बोकिल को मोदी से मुलाकात के लिए सिर्फ 9 मिनट का वक्त दिया गया था, लेकिन नोटबंदी का प्रपोजल जानने के बाद नरेंद्र मोदी ने इसमें इंटरेस्ट दिखाया और पूरे 2 घंटे तक चर्चा की थी |
आज नोटबंदी के पांच साल पुरे हो चुके हैं तो आइए कुछ सवालों के माध्यम से जानने के कोशिश करते हैं कि क्या पूरा हुआ है सरकार का नोटबंदी का मकसद :
सवाल: सरकार का नोट बंदी का फैसला 5 साल बाद कितना कारगर साबित हुआ है?
जवाब: लगभग पूरी दुनिया में आज डिजिटल इकोनॉमी हावी है। इसी की वजह से भारत आज प्रगति कर रहा है और वर्तमान में इसकी स्थिति पहले से काफी अच्छी है। भारत के पास डिजिटल इकोनामी होने के कारण विदेशों से भारी मात्रा में एफडीआई आ रहा है। इसके अलावा भारत के पास और कोई रास्ता ही नहीं था।
सवाल: नोटबंदी का जब ऐलान किया गया तो केंद्र सरकार ने कहा था कि इससे काले धन पर लगाम लगेगी और भ्रष्टाचार कम होगा। आपको क्या लगता है कि क्या वाकई उनका यह उद्देश्य पूरा हुआ है?
जवाब: करेंसी नोट के कम होने और डिजिटल इकोनॉमी के आने से लेन-देन में ट्रांसपेरैंसी बढ़ी है। लोगों को ट्रैक करना आसान हो गया है। नोटबंदी के बाद से देश में साहूकारी बंद हुई और ब्याज दर में कमी आई। वाइट मनी के ज्यादा सर्कुलेशन में आने से आज बेहद कम ब्याज दर पर बैंकों से लोन मिल रहा है। पहले करेंसी नोट की वजह से लेन-देन को ट्रैक करना मुश्किल था।
सिर्फ महाराष्ट्र की बात करें तो डिजिटाइजेशन की वजह से हर दिन यहां रेड हो रहीं हैं और बेनामी संपत्तियों को जब्त किया जा रहा है। करप्शन का सबसे बड़ा जरिया ही करेंसी नोट थी, जिसे डिजिटाइजेशन से खत्म करने का प्रयास किया गया है और मुझे लगता है कि वह प्रयास काफी हद तक सफल भी रहा है।
सवाल: नोटबंदी के दौरान पीएम ने कहा था कि फेक करेंसी का चलन कम होगा। इसी साल पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 31 % ज्यादा 500 के नकली नोट पकड़े गए हैं।
जवाब: नोटबंदी से पहले 86 प्रतिशत बड़े नोट(500 और 1000 रु) सर्कुलेशन में थे। वर्तमान समय में सिर्फ 18 प्रतिशत यानी 28 लाख करोड़ रुपए के 2 हजार के नोट सर्कुलेशन में हैं। बड़े नोटों का प्रचलन कम हुआ है और इससे फेक करेंसी पर लगाम लगी है। वर्तमान में 50-55 प्रतिशत 500 की नोट सर्कुलेशन में हैं। 200 की नोट तकरीबन 14-15 प्रतिशत हैं। नोट बंदी के बाद यह साबित हो गया कि बड़े नोट की जरुरत ही नहीं थी। जैसे-जैसे छोटे नोटों का चलन बढ़ेगा फेक करेंसी का चलन कम होगा।
सवाल: नोटबंदी के दौरान यह भी कहा गया कि इससे टेररिज्म या नक्सलवाद पर लगाम लगेगी। आपको क्या लगता है वाकई इस और सरकार सफल रही है?
जवाब: टेररिज्म और नक्सलवाद पर बहुत बड़ी नकेल डिजिटाइजेशन ने कसी है। पहले क्या इसमें फंडिंग आसानी से हो जाती थी लेकिन अब लगभग उन पर पूरी तरह से रोक लग चुकी है। कश्मीर का जो मुद्दा है वह एक देश द्वारा स्पॉन्सर्ड टेररिज्म है। उसे हम टेररिज्म ना कहें बल्कि प्रॉक्सी वार कहे तो ज्यादा सही होगा। डिजिटाइजेशन आने से टेररिज्म, नक्सलवाद और एक्सटॉर्शन जैसी घटनाएं कम हुई हैं। एक्सटॉर्शन करना है तो आपको सेल कंपनी के द्वारा करना पड़ता है और वह भी ट्रेकेबल होता है और कभी ना कभी ऐसे लोग पकड़े जाते हैं।
सवाल: नोटबंदी से किसानों, व्यापारियों या आम लोगों को क्या खास फायदा हुआ है?
जवाब: इससे डिजिटल इकोनामी एक्सपेंड हुई है। कोविड-19 2 साल अगर निकाल दें तो भारत ने लगातार इसके बाद तरक्की ही की है। वर्तमान में जीडीपी की ग्रोथ कोविड-19 बाद जिस तरीके से भारत ने पकड़ी है उसके पीछे सबसे बड़ी वजह डिजिटाइजेशन ही है। हमारे देश में 80% गरीब लोग हैं जिन्हें सरकार घर में बैठा कर खाना खिला रही है। 100 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन सरकार ने किया है, इसके पीछे हमारी मजबूत अर्थव्यवस्था ही सबसे बड़ा कारण है। किसानों के खातों में सीधे ₹2000 अब पहुंच रहे हैं अगर इसे कैश में देना होता तो शायद इसका 1% भी उनके खाते में नहीं पहुंच पाता।
सवाल: नोटबंदी को क्या उसी तरह एग्जीक्यूट किया गया, जैसा आप चाहते थे? क्या आपके पास पुराने बड़े नोट बैन करने का सरकार से बेहतर प्लान था?
जवाब: सरकार ने हमारा 5 प्वाइंट प्रपोजल नहीं माना। शायद सरकार चुनाव से पहले किए गए वादों को निभाना चाहती हो। हमने एक टैक्सलेस कैश इकोनॉमी की बात कही थी।हमारा प्रपोजल एक जीपीएस सिग्नल की तरह था। हमने सिर्फ उन्हें (सरकार को) एक सही रास्ता दिखाया। जैसे जीपीएस गलत रास्ते पर जाने पर आपको दूसरा रास्ता दिखाता है वैसा ही कुछ काम हमने किया। हमने पांच साल पहले ही नोटबंदी के फायदे और नुकसान के सभी प्वाइंट्स पब्लिक डोमेन में रखे थे। हमने कभी नहीं बोला कि 500 और 1000 के नोट एक झटके में निकाल दो। सिर्फ 1000 के नोट बाहर निकालते तो 35% का गैप आ जाता। 500 के नए नोट का स्टॉक बढ़ा देते तो 2000 का नोट इंट्रोड्यूस ही नहीं करना पड़ता।
सवाल: केंद्र सरकार को क्या प्रपोजल दिया था?
इंजीनियरों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की इस संस्था ने अपने प्रपोजल में कहा था कि इम्पोर्ट ड्यूटी छोड़कर 56 तरह के टैक्स वापस लिए जाएं। बड़ी करंसी 1000, 500 और 100 रुपए के नोट वापस लिए जाएं। देश की 78% आबादी रोज सिर्फ 20 रुपए खर्च करती है। ऐसे में उन्हें 1000 रुपए के नोट की क्या जरूरत? सभी तरह के बड़े ट्रांजैक्शन सिर्फ बैंक से जरिए चेक, डीडी और ऑनलाइन हों। कैश ट्रांजैक्शन के लिए लिमिट फिक्स की जाए। इन पर कोई टैक्स न लगाया जाए।
सवाल: राहुल गांधी और मनमोहन सिंह को भी दिया था प्रेजेंटेशन
बोकिल का कहना है कि ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी ने सिर्फ 2-3 सेकंड दिए थे लेकिन उनसे 3-4 मिनट अच्छी बात हुई। फिर उन्होंने अपने एक्सपर्ट का नंबर दिया था। उन्होंने फाइनेंस मिनिस्टर से बात करके पूरा प्लान समझाया था। उन्हें प्लान पसंद भी था, लेकिन हर सरकार चीजों को अलग नजरिए से देखती है। उनकी सोच अलग होती है। जब उन्होंने केंद्र सरकार को अपनी रिसर्च बताई तो उन्हें भी पसंद आई और तुरंत उस पर काम शुरू कर दिया।