शरद पूर्णिमा 2020:-
शरद पूर्णिमा 2020- वर्ष की सभी पूर्णिमा में आश्विन पूर्णिमा विशेष चमत्कारी मानी गई है | शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है | शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है | इसी आधार पर कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है |
इस वर्ष शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा 30 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है | माना जाता है समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा पर ही देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थी | इसलिए इसे लक्ष्मीजी के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है और इस दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा भी की जाती है |
इस बार शुक्रवार को शरद पूर्णिमा का योग बन रहा है | 7 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है | इससे पहले 18 अक्टूबर 2013 में शुक्रवार को ये पर्व मनाया गया था | अब 13 साल बाद यानी 7 अक्टूबर 2033 को ये संयोग बनेगा |
शुक्रवार को पूर्णिमा के होने से इसका शुभ फल और बढ़ जाएगा | साथ ही इस बार शरद पूर्णिमा का चंद्रोदय सर्वार्थसिद्धि और लक्ष्मी योग में हो रहा है, जिससे इस दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व रहेगा |
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आती हैं | शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर सभी को वरदान और कृपा बरसाती हैं | जो सोता रहता है, वहां माता लक्ष्मी दरवाजे से ही लौट जाती हैं |
कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी कर्ज से भी मुक्ति दिलाती हैं | यही कारण है कि इसे कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं | शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरी प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती है | कहते हैं कि इस रात को देखने के लिए समस्त देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी आते हैं |
शरद पूर्णिमा 2020 का शुभ मुहूर्त:-
पूर्णिमा तिथि का आरंभ- 30 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 47 मिनट से
पूर्णिमा तिथि की समाप्ति- 31 अक्तूबर को रात के 8 बजकर 21 मिनट पर |
शरद पूर्णिमा का महत्व:-
साल भर में आने वाली सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष रूप से इंतजार रहता है | शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है | शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर पूरी रात चांद की रोशनी में आसमान के नीचे रखा जाता है फिर अगले दिन सुबह इसे प्रसाद के तौर पर परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं |
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद ग्रहण करता है उसके शरीर से कई रोग खत्म हो जाते हैं | वहीं ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा शुभ फल नहीं देते हैं उन्हें खीर का सेवन जरूर करना चाहिए | इसके अलावा यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा देवी लक्ष्मी का आगमन होता है इस कारण से देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है |
शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी है | खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है | दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है | यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है | वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है |
इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है | एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए | चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है | इससे विषाणु दूर रहते हैं |
शरद पूर्णिमा की कथा:-
एक साहुकार के दो पुत्रियां थीं | दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थी | बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी | हुआ यह कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी | उसने पंडितों से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है | पूर्णिमा को पूरे विधि-विधान से पूजा करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है |
उसने शरद पूर्णिमा का व्रत किया | तब छोटी पुत्री के यहां संतान पैदा हुई, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गई | उसने अपनी संतान के लिटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया | फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और उसी जगह पर बैठने को कहा, जहां उसने अपनी संतान को उसने कपड़े से ढंका था | बड़ी बहन जब बैठने लगी, तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया और घाघरा छूते ही बच्चा रोने लगा |
बड़ी बहन बोली- ‘तुम मुझे कंलक लगाना चाहती थी | मेरे बैठने से यह मर जाता |’ तब छोटी बहन बोली, ‘यह तो पहले से मरा हुआ था | तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है | तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है | इस घटना के बाद से वह हर वर्ष शरद पूर्णिमा का पूरा व्रत करने लगी |’