मां कात्यायनी

नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है | कात्यायनी देवी दुर्गा जी का छठा अवतार हैं | शास्त्रों के अनुसार देवी ने कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, इस कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ गया | मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी मानी गई हैं | शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में प्रयासरत भक्तों को माता की अवश्य उपासना करनी चाहिए |

हिंदी पंचाग के अनुसार साल में नवरात्रि 4 बार मनाई जाती है | दो बार गुप्त नवरात्रि और दो नवरात्रि को मुख्य रूप से मनाया जाता है | इसमें चैत्र और शारदीय मुख्य नवरात्रि हैं, जिसे देशभर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है | नवरात्रि का मतलब है नौ रातें | नौ दिन तक चलने वाले शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है |

देवी मां के पावन दिन का पर्व शारदीय नवरात्रि आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को 26 सितम्बर 2022 से आरंभ होगा | अक्टूबर तक चलने वाले इन दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है | अक्टूबर को धूमधाम के साथ विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा | इसी दिन दुर्गा विसर्जन भी किया जाएगा | शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है | नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है | मान्यता है कि मां दुर्गा अपने भक्तों के हर कष्ट हर लेती हैं |

देवी कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाता है | यह देवी का कन्या स्वरूप है, जो अपने भक्त ऋषि कात्यायन की मुराद पूरी करने के लिए पुत्री रूप में प्रकट हुई थीं | नवरात्र में देवी कात्यायनी की पूजा के साथ ही नवरात्र का उत्सव जोर पकड़ने लगता है |

पूजा पंडालों में इस दिन से विशेष पूजा का आरंभ हो जाता है | पूजा पंडालों में नवरात्र की छठी तिथि को शाम के समय गाजे बाजे के साथ माता की डोली निकलती है और जिस बेल के वृक्ष में दो बेल एक साथ लगे होते हैं |

उनकी पूजा करके उनको पूजा में आमंत्रित किया जाता है | नवरात्र के सातवें दिन सुबह इस बेल को डोली में बैठाकर लाया जाता है और इसी बेल की पूजा करके देवी के नेत्रों में ज्योति का संचार किया जाता है | इस विधि के बाद पूजा पंडालों में देवी के मुख पर लगा आवरण हटा दिया जाता है और भक्त माता के रूप को निहार कर धन्य होते हैं |

मां कात्‍यायनी का रूप:-

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भव्य है | इनकी चार भुजाएं हैं | मां कात्यायनी के दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला वरमुद्रा में है | बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है |

मां कात्‍यायनी सिंह की सवारी करती हैं | मां कात्‍यायनी को पसंदीदा रंग लाल है | मान्‍यता है कि शहद का भोग पाकर वह बेहद प्रसन्‍न होती हैं | नवरात्रि के छठे दिन पूजा करते वक्‍त मां कात्‍यायनी को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है |

मां कात्यायनी

मां कात्यायनी की पौराणिक कथा:-

पंडितजी का कहना है कि इनके नाम से जुड़ी कथा है कि एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि थे | उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन उत्पन्न हुए | उन्होंने भगवती पराम्बरा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की |

उनकी इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें | माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली | कुछ समय के पश्चात जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था | महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं |

माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा विधि:-

सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें | इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है | पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है |

देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए | श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए | मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है | यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं | इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है |

ध्यान:-

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

स्तोत्र पाठ:-

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

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