मां महागौरी:-
नवरात्र के आठवें दिन माता आदि शक्ति के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है | शिवपुराण के अनुसार, महागौरी को 8 साल की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास हो गया था | इसलिए उन्होंने 8 साल की उम्र से ही भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी | इसलिए अष्टमी के दिन महागौरी का पूजन करने का विधान है | इस दिन मां की पूजा में दुर्गासप्तशती के मध्यम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है |
महागौरी व्यक्ति के भीतर पल रहे कुत्सित और मलिन विचारों को समाप्त कर प्रज्ञा और ज्ञान की ज्योति जलाता है | मां का ध्यान करने से व्यक्ति को आत्मिक ज्ञान की अनुभूति होती है उसके भीतर श्रद्धा विश्वास व निष्ठ की भावना बढ़ाता है | नवरात्रि की अष्टमी तिथि को आठ वर्ष की कन्या की पूजा करें | उसके चरण धुलाकर भोजन करवाएं | फिर उपहार देकर आशीर्वाद लें | आपकी गौरी पूजा संपन्न होगी माता महागौरी |
नवरात्र अष्टमी व्रत कथा:-
भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है | देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा | महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं | देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके | शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते ||”
महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं | देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया | इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया | देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई और माँ ने उसे अपना वाहन बना लिया, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी | इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं |
महागौरी का सांसारिक स्वरूप:-
मां महागौरी को शिवा भी कहा जाता है | इनके एक हाथ में दुर्गा शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है तो दूसरे हाथ में भगवान शिव का प्रतीक डमरू है | अपने सांसारिक रूप में महागौरी उज्ज्वल, कोमल, श्वेत वर्णी तथा श्वेत वस्त्रधारी और चतुर्भुजा हैं | इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू है तो तीसरा हाथ वरमुद्रा में हैं और चौथा हाथ एक गृहस्थ महिला की शक्ति को दर्शाता हुआ है | महागौरी को गायन और संगीत बहुत पसंद है | ये सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार रहती हैं | इनके समस्त आभूषण आदि भी श्वेत हैं | महागौरी की उपासना से पूर्वसंचित पाप नष्ट हो जाते हैं |
पंचांग दिवाकर के अनुसार दुर्गा अष्टमी तिथि:-
- नवरात्र अष्टमी तिथि आरंभ 23 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 57 मिनट
- नवरात्र अष्टमी तिथि समाप्त 24 अक्टूबर 6 बजकर 59 मिनट तक इसके बाद नवमी तिथि आरंभ |
माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा विधि:-
ज्योतिषाचार्य के अनुसार अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं | सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें | इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें | मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं | हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें |
अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है | कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए नहीं तो 2 कन्याओं की पूजा करें | कन्याओं की आयु 2 साल से ऊपर और 10 साल से अधिक न हो | भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए |