नागरिकता संशोधन बिल क्या है? बिल लोकसभा से पास
10 दिसम्बर को देर रात नागरिकता संशोधन बिल को पास किआ गया, जिसके बाद बहोत से बदलाव किये गए हैं, इस बिल के साथ किये गए बदलाव के बारे में भी हम आपको जानकारी देंगे, तो आइये जानते हैं की की नागरिकता संशोधन बिल क्या है और इसका क्या महत्त्व है, और इसका आप पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
नागरिकता संशोधन बिल क्या है?
नागरिकता संशोधन बिल का मुख्य उद्देश्य छह समुदायों – हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध तथा पारसी – के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है. इस नए विधेयक में अन्य संशोधन भी किए गए हैं, ताकि ‘गैरकानूनी रूप से भारत में घुसे’ लोगों तथा पड़ोसी देशों में धार्मिक अत्याचारों का शिकार होकर भारत में शरण लेने वाले लोगों में स्पष्ट रूप से अंतर किया जा सके.
नागरिक संशोधन बिल के अंतर्गत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को CAB के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी।
इस बिल के ज़रिये मौजूदा कानूनों में संशोधन किआ गया है, ताकि चुनिंदा वर्गों के गैरकानूनी प्रवासियों को छूट प्रदान की जा सके. चूंकि इस विधेयक में मुस्लिमों को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए विपक्ष ने बिल को भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए उसकी आलोचना की है
नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा से पास हो गया है. इस बिल के पक्ष में 311 वोट पड़े हैं. वहीं विपक्ष में 80 वोट पड़े हैं. नागरिक संशोधन बिल कानून बन जाता है तो पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न के चलते आए हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को लोगों को सीएबी के तहत भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।
कौन पात्र है?
प्रस्तावित कानून उन लोगों पर लागू होता है जो “धर्म के आधार पर उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने के लिए मजबूर या मजबूर थे”। इसका उद्देश्य ऐसे लोगों को अवैध प्रवास की कार्यवाही से बचाना है। नागरिकता के लिए कट-ऑफ की तारीख 31 दिसंबर, 2014 है, जिसका अर्थ है कि आवेदक को उस तारीख को या उससे पहले भारत में प्रवेश करना चाहिए। भारतीय नागरिकता, वर्तमान कानून के तहत, या तो भारत में पैदा होने वालों को दी जाती है या यदि वे देश में न्यूनतम 11 वर्षों तक निवास करते हैं।
विधेयक में उप-धारा (डी) को धारा 7 में शामिल करने का प्रस्ताव है, जो ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) पंजीकरण को रद्द करने के लिए प्रदान करता है, जहां ओसीआई कार्ड-धारक ने नागरिकता अधिनियम के किसी प्रावधान या बल में किसी अन्य कानून का उल्लंघन किया है।
मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है. इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है.
मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है.