Vishwakarma Jayanti 2021:-
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना गया है | विश्वकर्मा जयंती के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है | इस दिन फैक्ट्री और कारखानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा होती है | कहा जाता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था | इस साल विश्वकर्मा जयंती (Vishwakarma Jayanti), 17 सितंबर को मनाई जाएगी | इसी दिन कन्या संक्रांति भी मनाई जाती है | धार्मिक मान्यता है कि इस भगवान विश्वकर्मा की विधिवत्त पूजा-अर्चना करने से व्यापार में बढ़ोतरी होती है और व्यक्ति खूब तरक्की करता है |
धार्मिक मान्यता के अनुसार, विश्वकर्मा जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है | इस दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं | भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार कहा जाता है | धार्मिक मान्यता है कि इन्होंने ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका, जगन्नाथपुरी, भगवान शंकर का त्रिशुल, विष्णु का सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था | माना जाता है कि विश्वकर्मा वास्तु देव के पुत्र हैं |
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा की विधिवत्त पूजा-अर्चना करने से व्यापार में बढ़ोतरी होती है और मुनाफा होता है | विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर माना जाता है | उन्होंने ही ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सृष्टि रचाई थी | पौराणिक कथाओं के अनुसार विश्वकर्मा भगवान ने ही देवताओं के लिए अस्त्र, शस्त्र, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया था | बता दें कि विश्वकर्मा भगवान की पूजा सभी कलाकारों, शिल्पकारों और औद्योगिक घरानों से जुड़े लोग करते हैं |
विश्वकर्मा की पौराणिक कथा:-
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस समस्त ब्रह्मांड की रचना भी विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई है | ऋग्वेद के 10वे अध्याय के 121वे सूक्त में लिखा है कि विश्वकर्मा जी के द्वारा ही धरती, आकाश और जल की रचना की गई है | विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की |
कहा जाता है कि सभी पौराणिक संरचनाएं, भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित हैं | भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से माना जाता है | पौराणिक युग के अस्त्र और शस्त्र, भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित हैं | वज्र का निर्माण भी उन्होंने ही किया था | माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था |
भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के बारे में विचार किया | इसकी जिम्मेदारी शिवजी ने भगवान विश्वकर्मा दी तब भगवान विश्वकर्मा ने सोने के महल को बना दिया | इस महल की पूजा करने के लिए भगवान शिव ने रावण का बुलाया | लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने पूजा के बाद दक्षिणा के रूप में महल ही मांग लिया |
भगवान शिव ने महल को रावण को सौंपकर कैलाश पर्वत चले गए | इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण भी किया था | कौरव वंश के हस्तिनापुर और भगवान कृष्ण के द्वारका का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था |
विश्वकर्मा पूजा का महत्व:-
विश्वकर्मा जयंती के दिन सभी कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं | साथ ही व्यापार में तरक्की और उन्नति होती है | मान्यता है तकनीकी क्षेत्र से जुड़े जो भी लोग हर साल विश्वकर्मा जयंती पर अपने औजारों और अस्त्रों की पूजा करते हैं, पूरे साल उनके हथियार और औजार बिना किसी बाधा के अच्छी तरह से काम करते हैं |
कलयुग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर व्यक्ति के लिए जरूरी और लाभप्रद बताई गई है | कलयुग का संबंध कलपुर्जों से माना जाता है और आज के युग में कलपुर्जे का प्रयोग हर शख्स कर रहा है | लैपटॉप, मोबाइल फोन और टैबलेट भी एक प्रकार की मशीन हैं और इनके बिना आज के युग में रह पाना बहुत मुश्किल है | इसलिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना हम सबके लिए बेहद शुभफलदायी मानी जा रही है |
विश्वकर्मा पूजा विधि:-
विश्वकर्मा जयंती हर साल तब मनाई जाती है, जब सूर्यदेव सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करते हैं | इस दिन पूजा करने के लिए सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहन लें | फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें | पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप और रक्षासूत्र शामिल करें | पूजा में घर में रखा लोहे का सामान और मशीनों को शामिल करें | पूजा करने वाली चीजों पर हल्दी और चावल लगाएं | इसके बाद पूजा में रखे कलश को हल्दी लगा कर रक्षासूत्र बांधे | इसके बाद पूजा शुरु करें और मंत्रों का उच्चारण करते रहें | पूजा खत्म होने के बाद लोगों में प्रसाद बांट दें |
भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ‘ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:’, ‘ॐ अनन्तम नम:’, ‘पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए | रुद्राक्ष की माला से जप करना अच्छा रहता है |