व्यक्ति अपने जीवन में अनेक चल और अचल संपत्ति या खरीदता है। जब कभी व्यक्ति ऐसी संपत्तियों को बगैर वसीयत किए छोड़कर मर जाता है तब उसकी संपत्ति उसके वारिसों में न्यायगत होती है। अचल संपत्ति के संबंध में उत्तराधिकार के वे नियम लागू होते हैं जो पर्सनल लॉ के अंतर्गत दिए गए हैं। चल संपत्ति के अंतर्गत मुख्य रूप से बैंक एफडी, शेयर, डिबेंचर इत्यादि आते हैं।
यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु ऐसी स्थिति में होती है कि वह कोई अपना बैंक खाता छोड़कर मर जाता है और अपने खाते का नॉमिनी नहीं बनाता है तब ऐसी स्थिति में प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है।
कभी-कभी बैंक अंडरटेकिंग के माध्यम से भी वारिसों के एकमत व्यक्ति के खाते में जमा रुपए प्रदान कर देती परंतु कभी-कभी स्थिति ऐसी होती है कि वारिसों के मध्य कोई विवाद होता इस कारण बैंक वारिसों से उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की मांग करती है।
क्या होता है उत्तराधिकार प्रमाण पत्र:-
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 372 के अंतर्गत प्रमाण पत्र का उल्लेख मिलता है। यह प्रमाण पत्र किसी चल संपत्ति के संबंध में प्राप्त किया जाता है। यह ध्यान देना चाहिए कि किसी भी अचल संपत्ति के संबंध में प्रमाण पत्र नहीं प्राप्त किया जाता है।
प्रमाण पत्र केवल चल संपत्ति के संबंध में ही प्राप्त किया जाता है। इस प्रमाण पत्र के प्राप्त होने के बाद बैंक या कोई कंपनी बैंक खाते में जमा धनराशि या शेर को मृतक व्यक्ति के वारिसों में हस्तांतरित कर देती है।
कैसे प्राप्त होता है उत्तर विकार प्रमाण पत्र:-
उत्तराधिकार प्रमाण पत्र न्यायालय प्रक्रिया से प्राप्त होता है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 372 के अंतर्गत इससे संबंधित प्रक्रिया भी दी गई है। ऐसा प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदक को सर्वसाधारण को पक्षकार बनाकर जिला न्यायालय के समक्ष लगाना होता है।
जिला न्यायाधीश किसी सक्षम अधिकारी को ऐसे मामले सुनने के लिए सशक्त कर सकता है। सशक्त किए गए व्यक्ति द्वारा अधिकारी द्वारा ऐसे आवेदन पर सुनवाई की जाती है, उसके सबूतों का अवलोकन किया जाता है, उसके बाद प्रमाण पत्र प्रदान कर दिया जाता है।
उत्तराधिकार का प्रमाण पत्र न्यायाधीश द्वारा एक निर्णय लिखकर पारित किया जाता है। न्यायाधीश निर्णय लिखते हैं उस निर्णय में आवेदक द्वारा मांगी गई मांगों को मानकर स्पष्ट रूप से उल्लेख कर प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है।
पक्षकारों के मध्य कोई विवाद होता है ऐसी स्थिति में न्यायाधीश मामले को सुनता है और फिर उसमें अपना निर्णय प्रदान करता है। प्रमाण पत्र न्यायाधीश प्रकरण को पूरी तरह से सुनने के बाद ही प्रदान करता है।
यह प्रकरण एक संक्षिप्त विचारण के माध्यम से निपटाया जाता है जहां अधिक से अधिक 6 माह की अवधि में इस प्रकरण को समाप्त कर दिया जाता है। समाचार पत्र में विज्ञापन के माध्यम से सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि यदि उस मामले में उत्तराधिकार से संबंधित किसी का हक है तो न्यायालय में आकर आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है।
एक समय अवधि के बाद यदि कोई आपत्ति नहीं आती है तब न्यायालय प्रमाण पत्र को प्रदान करता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र सामान्य रूप से शेयर, डिबेंचर, एफडी से संबंधित मामलों में ही लागू होते हैं और अधिकांश इन्हीं मामलों में प्रमाण पत्र की मांग की जाती है।