Jivitputrika Vrat 2021:-

पुत्र के दीर्घायु, सुखी और निरोगी जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत रखा जाता है | जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है | इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें जल, फल या अन्न आदि ग्रहण नहीं किया जाता है | यह कठिन व्रतों में से एक है | इस​ दिन पूजा के समय गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से जुड़ी पौराणिक कथा सुना जाता है | इसे जीवित्पुत्रिका व्रत कथा या जितिया व्रत कथा भी कहते हैं | इस साल 2021 में जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत 29 सितंबर दिन बुधवार को पड़ रहा है |

इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत व्रत आज 28 सितंबर को रखा जाएगा और नवमी तिथि यानी अगले दिन पारण किया जाता है | इस व्रत पर भी छठ पूजा की तरह नहाए-खाए की परंपरा होती है | यह उपवास मुख्य रूप से भारत में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है | जितिया उपवास नेपाल में भी लोकप्रिय है | माताएं अपने पुत्र के कल्याण के लिए पूरे एक दिन निर्जला व्रत रखती हैं | उसके अगले दिन स्नान आदि से निवृत होकर दैनिक पूजा करती हैं और फिर पारण करके व्रत को पूरा करती हैं |

जीवित्पुत्रिका व्रत 2021 शुभ मुहूर्त:-

हिन्दू कैलेंडर के आधार पर 28 सितंबर दिन मंगलवार को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शाम 06:16 बजे से शुरु हो रही है | आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि का समापन 29 सितंबर दिन गुरुवार को रात 08:29 बजे हो रहा है | ऐसे में जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि 29 सितंबर को मान्य है, इसलिए जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत इस दिन ही रखा जाएगा |

  • अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 28 सितंबर 2021 दिन मंगलवार की शाम को 06 बजकर 16 मिनट से 
  • अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त- 29 सिंतबर 2021 दिन बुधवार को रात 08 बजकर 29 मिनट पर |

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व:-

इस व्रत को संतान प्राप्ति, उनकी लंबी आयु और सुखी निरोग जीवन की कामना के साथ किया जाता है | धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर होते हैं | पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुण्य कर्मों को अर्जित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को जीवनदान दिया था, इसलिए इस व्रत को संतान की रक्षा की कामना के साथ किया जाता है | माना जाता है कि इस व्रत के फलस्वरुप भगवान कृष्ण संतान की रक्षा करते हैं |

जितिया व्रत कथा या जीवित्पुत्रिका व्रत कथा:-

गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा के लिए स्वयं को पक्षीराज गरुड़ का भोजन बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे | उन्होंने अपने साहस और परोपकार से शंखचूड़ नामक नाग की जीवन बचाया था | उनके इस कार्य से पक्षीराज गरुड़ बहुत प्रसन्न हुए थे और नागों को अपना भोजन न बनाने का वचन दिया था |

पक्षीराज गरुड़ ने जीमूतवाहन को भी जीवनदान दिया था | इस तरह से जीमूतवाहन ने नाग वंश की रक्षा की थी | इस घटना के बाद से ही हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा | इस दिन गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान है | धार्मिक मान्यताओं ​के अनुसार, यह व्रत करने से पुत्र दीर्घायु, सुखी और निरोग रहते हैं |

जीवित्पुत्रिका व्रत कैसे करें:-

  • सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें |
  • भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें |
  • इस पूजा के लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें |
  • इस व्रत के जौरान मिट्टी में गाय का गोबर मिलाकर उससे चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है |
  • इन दोनों मूर्तियों के माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है |
  • पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुने |
  • तीसरे दिन व्रत का पारण करने के बाद दान दक्षिणा दें सकते है |
  • मान्यता है कि व्रत का पारण सूर्योदय के बाद गाय के दूध से ही करना चाहिए |

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