Chhath Puja 2022:-
छठ सूर्य और छठी माता की उपासना का पर्व है | हिन्दू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है | इस पूजा में छठी मईया के लिए व्रत किया जाता है | यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है | इसलिए छठ पूजा के दौरान कई बातों का ध्यान रखा जाता है |
छठ पूजा का प्रारंभ दो दिन पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है, फिर पंचमी को लोहंडा और खरना होता है | उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है, जिसमें सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है | इसके बाद अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है | तिथि के अनुसार, छठ पूजा 4 दिनों की होती है |
छठ पर्व पर क्यों की जाती है सूर्य की आराधना:-
सूर्य को ग्रंथों में प्रत्यक्ष देवता यानी ऐसा भगवान माना है जिसे हम खुद देख सकते हैं | सूर्य ऊर्जा का स्रोत है और इसकी किरणों से विटामिन डी जैसे तत्व शरीर को मिलते हैं | दूसरा, सूर्य मौसम चक्र को चलाने वाला ग्रह है | ज्योतिष के नजरिए से देखा जाए तो सूर्य आत्मा का ग्रह माना गया है | सूर्य पूजा आत्मविश्वास जगाने के लिए की जाती है |
पुराणों के नजरिए से देखें तो सूर्य को पंचदेवों में से एक माना गया है, ये पंच देव हैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य | किसी भी शुभ काम की शुरुआत में सूर्य की पूजा अनिवार्य रूप से की जाती है | शादी करते समय भी सूर्य की स्थिति खासतौर पर देखी जाती है | भविष्य पुराण से ब्राह्म पर्व में श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को सूर्य पूजा का महत्व बताया है | बिहार में मान्यता प्रचलित है कि पुराने समय में सीता, कुंती और द्रोपदी ने भी ये व्रत किया था |
सूर्य की ही बहन हैं छठ माता:-
माना जाता है कि छठ माता सूर्यदेव की बहन हैं | जो लोग इस तिथि पर छठ माता के भाई सूर्य को जल चढ़ाते हैं, उनकी मनोकामनाएं छठ माता पूरी करती हैं | छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं | इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है | मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि प्रकृति ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है | इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं | माना ये भी जाता है कि देवी दुर्गा का छठवां रूप कात्यायनी ही छठ मैया हैं |
छठ व्रत की कथा:-
कथा सतयुग की है | उस समय शर्याति नाम के राजा थे | राजा की कई पत्नियां थीं, लेकिन बेटी एक ही थी | उसका नाम था सुकन्या | एक दिन राजा शिकार खेलने गए | साथ में सुकन्या भी थीं | जंगल में च्यवन नाम के ऋषि तपस्या कर रहे थे | ऋषि काफी समय से तपस्या कर रहे थे, इस वजह से उनके शरीर के आसपास दीमकों ने घर बना लिए थे | सुकन्या ने खेलते हुई दीमक की बांबी में सूखी घास के कुछ तिनके डाल दिए | उस जगह पर ऋषि की आंखें थीं | तिनकों से ऋषि की आंखें फूट गईं | इससे ऋषि गुस्सा हो गए, उनकी तपस्या टूट गई |
जब ये बात राजा को मालूम हुई तो वे माफी मांगने के लिए ऋषि के पास पहुंचे | राजा ने ऋषि को अपनी बेटी सुकन्या सेवा के लिए सौंप दी | इसके बाद सुकन्या ऋषि च्यवन की सेवा करने लगी | कार्तिक मास में एक दिन सुकन्या पानी भरने जा रही थी, तभी उसे एक नागकन्या मिली | नागकन्या ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य पूजा और व्रत करने के लिए कहा | सुकन्या ने पूरे विधि-विधान और सच्चे मन से छठ का व्रत किया | व्रत के प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखें ठीक हो गईं | तभी से हर साल छठ पूजा का पर्व मनाया जाने लगा |