माँ शारदा माता- मंदिर की खोज के बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया. भक्त की तपस्या से खुश होकर मां ने आल्हा को अमरता का वरदान दे दिया. मां शारदा के मंदिर प्रांगण में फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है. आस्था है कि हर दिन ब्रह्म मुहुर्त में खुद आल्हा द्वारा मां की पूजा-अर्चना की जाती है. 

मां के मंदिर की तलहटी में आज भी आल्हा देव के अवशेष हैं, उनकी तलवार और खड़ाऊ आम भक्तों के दर्शन के लिए रखी गई है. यहां आल्हा तालाब भी है, जिसे प्रशासन ने संरक्षित कर रखा है. सूचना बोर्ड में इस तालाब के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व का वर्णन किया गया है, यहां आल्हा-उदल अखाड़ा भी है. 

देशभर में शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है . मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी स्थित है मैहर , मैहर में पहाड़ों पर बसे इस शक्तिपीठ में हर नवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है, इस दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. हर सुबह 4 बजे माता की आरती होती है इसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं .आज हम आप को माँ शारदा माता मैहर (मैहर शक्तिपीठ) के इतिहास से जुडी जानकरी दे रहे हैं , अतः आप सभी से अनुरोध है कि आर्टिकल को पूरा पढ़े |

मैहर :

मैहर  मध्य प्रदेश की एक तहसील है । यह एक प्रसिद्ध  हिन्दू तीर्थ स्थल है। यह सतना जिले में है| मैहर में शारदा माँ का प्रसिद्ध मन्दिर है जो नैसर्गिक रूप से समृद्ध कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोद में अठखेलियां करती तमसा के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठो में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर ‘नरसिंह पीठ’ के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर  आल्हखंड के नायक  आल्हा  व  दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है।

यहाँ प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष में दोनों नवरात्रो में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों दर्शनार्थी मैहर आते हैं। मां शारदा के बगल में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है। देवी शारदा का यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ स्थल देश के लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है माता का यह मंदिर धार्मिक तथा ऐतिहासिक है। वर्तमान में यहां पर आर्थिक दृष्टि से सीमेंट की तीन फैक्ट्रियां कार्यरत हैं। के जे एस के पास इच्छापूर्ति मंदिर पर्यटकों का दर्शनीय स्थल है ।

मैहर में लगता है हर साल मेला :

मैहर में मां शारदा का मंदिर है, यहां हर साल शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में मेला लगता है. देश-विदेश से मां के भक्त अपनी इच्छाएं लेकर मंदिर पहुंचते हैं. मां शारदा उन देवियों में से हैं, जिन्होंने कलयुग में भी अपने भक्त आल्हा की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अमरता का वरदान दिया था. माना जाता है कि नवरात्रि में आज भी देवी मां की पहली पूजा आल्हा देव ही करते हैं |

विंध्य की पर्वत श्रेणियों में बसा है माँ शारदा का मंदिर : माँ शारदा माता

आदि शक्ति मां शारदा देवी का मंदिर मैहर नगर के पास विंध्य पर्वत श्रेणियों के बीच त्रिकूट पर्वत पर स्थित है. मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर में मान्यता है कि यहां मां शारदा की पहली पूजा आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी. मैहर स्थित पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में भी मिलता है, इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ ही पुराणों में भी कई बार आया है. माता के इस मंदिर तक जाने के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है, हर दिन यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं|

इस कारण बना मैहर शक्तिपीठ :

माँ शारदा माता, मैहर

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माता के इस मंदिर तक जाने के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है, हर दिन यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं. मंदिर के बारे माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी. लेकिन राजा दक्ष को यह इच्छा मंजूर नहीं थी, बावजूद इसके माता सती ने जिद कर भगवान शिव से विवाह कर लिया |

माता सती ने किया था देह त्याग

माता सती और भगवान शिव के विवाह के बाद राजा दक्ष ने एक यज्ञ करवाया, जिसमें उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. भगवान शिव को नहीं बुलाया गया, यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित ना करने का कारण पूछा, इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कह दिए. इस अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए|

‘माई का हार’ बन गया ‘मैहर’

सती के देह त्याग के बारे में भगवान शिव को पता चलते ही क्रोध में आकर उनका तीसरा नेत्र खुल गया, माना जाता है कि ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया. जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ, माना जाता है कि सतना के पास माता सती का हार गिरा था, जिस कारण जगह का नाम ‘माई का हार’ पड़ गया लेकिन अपभ्रंश होकर इसका नाम मैहर हो गया, इसी कारण इसे भी शक्तिपीठ माना गया |

आल्हाखंड ने ढूंढ निकाला मंदिर :

त्रिकूट पर्वत की चोटी पर स्थित यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बन चुका है. देश-विदेश से पर्यटक यहां सिर्फ मां शारदा की एक झलक देखने के लिए पहुंचते हैं. मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है, बताया जाता है कि आल्हाखंड के नायक दो सगे भाई आल्हा और उदल मां शारदा के अनन्य उपासक थे. आल्हा-उदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी |

मां ने आल्हा को दे दिया अमरता का आशीर्वाद :

मंदिर की खोज के बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 वर्ष तक तपस्या कर माँ शारदा देवी को प्रसन्न किया, भक्त की तपस्या से खुश होकर मां ने आल्हा को अमरता का वरदान दे दिया. मां शारदा के मंदिर प्रांगण में फूलमती माता का मंदिर आल्हा की कुल देवी का है. आस्था है कि हर दिन ब्रह्म मुहुर्त में खुद आल्हा द्वारा मां की पूजा-अर्चना की जाती है. 

मां के मंदिर की तलहटी में आज भी आल्हा देव के अवशेष हैं, उनकी तलवार और खड़ाऊ आम भक्तों के दर्शन के लिए रखी गई है. यहां आल्हा तालाब भी है, जिसे प्रशासन ने संरक्षित कर रखा है. सूचना बोर्ड में इस तालाब के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व का वर्णन किया गया है, यहां आल्हा-उदल अखाड़ा भी है. 

कौन थे आल्हा?

आल्हा और ऊदल दो भाई थे. ये बुन्देलखण्ड के महोबा के वीर योद्धा और परमार के सामंत थे. कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था. उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है. इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है. आखरी लड़ाई उन्होंने पृथ्‍वीराज चौहान के साथ लड़ी थी. मां शारदा माई के भक्त आल्हा आज भी मां की पूजा और आरती करते हैं. 

आल्हाखण्ड ग्रंथ :

आल्हाखण्ड में गाया जाता है कि इन दोनों भाइयों का युद्ध दिल्ली के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान से हुआ था. पृथ्‍वीराज चौहान को युद्ध में हारना पड़ा था लेकिन इसके पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था. कहते हैं कि इस युद्ध में उनका भाई वीरगति को प्राप्त हो गया था. गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था. पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखरी लड़ाई थी. मान्यता है कि मां के परम भक्त आल्हा को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था, लिहाजा पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था. मां के आदेशानुसार आल्हा ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी. जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है. मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी भी आल्हा व पृथ्वीराज चौहान की जंग की गवाही देते हैं.

मंदिर के रहस्यों को वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए :

मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है. मैहर का मतलब है मां का हार. माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था| माँ शारदा के इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं, तब देर रात्रि यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है. लोग कहते है कि मां के भक्त ”आल्हा” अभी भी पूजा करने आते हैं. अक्सर सुबह की आरती वे ही करते हैं, और रोज जब मंदिर के पट खुलते है तब कुछ न कुछ रहस्यमय अजूबे के दर्शन होते है. कभी मन्दिर के गर्भगृह रोशनी से सरोबार रहता है तो कभी अद्भुत खुशबू से. अक्सर मन्दिर के गर्भगृह में मां शारदा के ऊपर अद्भुत फूल चढ़ा मिलता है. मैहर माता के मंदिर में लोग अपनी मनमांगी मुरादे पाने के लिए साल भर आते है. ऐसी मान्यता है कि शारदा माता इंसान को अमर होने का वर प्रदान करती है.

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माँ शारदा मंदिर का इतिहास :

विन्ध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर के बारे मान्यता है कि मां शारदा की प्रथम पूजा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी. मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्मग्रंथ ”महेन्द्र” में मिलता है. इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है. मां शारदा की प्रतिमा के ठीक नीचे के न पढ़े जा सके शिलालेख भी कई पहेलियों को समेटे हुए हैं. सन्‌ 1922 में जैन दर्शनार्थियों की प्रेरणा से तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने शारदा मंदिर परिसर में जीव बलि को प्रतिबंधित कर दिया था.

पिरामिडाकार त्रिकूट पर्वत में विराजीं मां शारदा का यह मंदिर 522 ईसा पूर्व का है. कहते हैं कि 522 ईसा पूर्व चतुर्दशी के दिन नृपल देव ने यहां सामवेदी की स्थापना की थी, तभी से त्रिकूट पर्वत में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ. ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस तथ्य का प्रमाण प्राप्त होता है कि सन्‌ 539 (522 ईपू) चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नृपलदेव ने सामवेदी देवी की स्थापना की थी|

कैसे पहुंचे माँ शारदा माता, मैहर :

वायु मार्ग:

मैहर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर, खजुराहो और इलाहाबाद है। इन हवाई अड्डों से आप ट्रेन, बस या टैक्सी से आसानी से मैहर तक पहुंच सकते हैं। जबलपुर से मैहर दूरी 150 किलोमीटर खजुराहो से मैहर दूरी 130 किलोमीटर इलाहाबाद से मैहर दूरी 200 किलोमीटर |

ट्रेन द्वारा

आम तौर पर सभी ट्रेनों में मैहर स्टेशन पर रोक नहीं होती है, लेकिन नवरात्र उत्सवों के दौरान ज्यादातर ट्रेनें मैहर पर रुकती हैं। सभी ट्रेनों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जंक्शन – सतना स्टेशन से मैहर स्टेशन की दूरी 36 किलोमीटर है मैहर स्टेशन से कटनी स्टेशन की दूरी 55 किलोमीटर है|

सड़क मार्ग

मैहर शहर अच्छी तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग 7 के साथ सड़क से जुड़ा हुआ है . आप आसानी से निकटतम प्रमुख शहरों से मैहर शहर के लिये नियमित बसें पा सकते हैं।

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