माँ विंध्यवासिनी की कहानी: आस्था का चमत्कारी धाम, मिर्जापुर

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माँ विंध्यवासिनी की कहानी
माँ विंध्यवासिनी की कहानी

विंध्यवासिनी या योगमाया माँ दुर्गा  के एक परोपकारी स्वरूप का नाम है। उनकी पहचान आदि पराशक्ति के रूप में की जाती है। उनका मंदिर उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे मिर्जापुर  से 8 किमी दूर विंध्याचल में स्थित है। एक तीर्थस्थल  हिमांचल प्रदेश  में स्थित है, जिसे बंदला माता मंदिर भी कहा जाता है। माँ विन्ध्यासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जो की   महालक्ष्मी , महासरस्वती और महाकाली हैं। मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता।

माँ विंध्यवासिनी देवी को उनका नाम विंध्य पर्वत से मिला और विंध्यवासिनी नाम का शाब्दिक अर्थ है, वह विंध्य में निवास करती हैं। जैसा कि माना जाता है कि धरती पर शक्तिपीठों का निर्माण हुआ, जहां सती के शरीर के अंग गिरे थे, लेकिन विंध्याचल  वह स्थान और शक्तिपीठ है, जहां देवी ने अपने जन्म के बाद निवास करने के लिए चुना था।

माँ विंध्यवासिनी का जन्म :

श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार  देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्री कृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी  को पार कर गोकुल में नंदजी  के घर पहुंचा दिया था तथा वहां यशोदा  के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं आदि पराशक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई।

पौराणिक मान्यताएँ :

भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत  के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचल पर आप सदैव विराजमान रहती हैं।पद्यपुराण  में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी।

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श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी ने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ।

शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है। शिव पुराण  में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी (नन्द बाबा  की पुत्री) कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं । इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति  देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है|

मिर्जापुर:

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है. इस देश में कई मंदिर ऐसे हैं जो अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. इनमें से कई मंदिर तो सदियों पुराने हैं. शासक बदले, साम्राज्य बदला पर ये मंदिर उसी स्थान पर पूरी भव्यता के साथ खड़े रहे . इन्हीं में से एक है यूपी के मिर्जापुर में बना मां विंध्यवासिनी का मंदिर |

विंध्याचल की पहाड़ियों में बना है मां विंध्यवासिनी का मंदिर :

माँ विंध्यवासिनी की कहानी

पूर्वांचल में गंगा नदी के किनारे बसे मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल की पहाड़ियों में मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. मां विंध्यवासिनी का दरबार 51 शक्तिपीठों में से एक है

विंध्यवासिनी मंदिर को जागृत पीठ भी कहा गया है:

उत्तर प्रदेश का विंध्यवासिनी मंदिर, जिसे जागृत शक्तिपीठ भी माना जाता है. शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है. मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं. शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं. विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं . शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है.

धर्मग्रंथों में दर्ज है मां विंध्यवासिनी की महिमा :

यहां साल के दोनों नवरात्रों में देश के कोने-कोने से यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं. विध्यवासिनी मां की महिमा का उल्लेख धर्म ग्रंथों में मिलता है. जो त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जो की महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं. मिर्जापुर के विंध्‍य पर्वत पर बसी मां विंध्‍यवासिनी के दरबार की महिमा अपरंपार है. महाभारत हो या पद्मपुराण,  हर जगह मां के इस स्वरूप का वर्णन मिलता है. मान्यता है कि मां के ही आर्शीवाद से इस सृष्टि का विस्तार हुआ है. आदिशक्ति जगत जननी मां विन्ध्यवासिनी चमत्कार की ढेरों कहानियां अपने अंदर समेटे हुए हैं |

भक्तों को तीन रूपों में मिलता है दर्शन :

मां विन्ध्यवासिनी  एक-दो नहीं, बल्कि तीन रुपों में भक्तों को दर्शन देती हैं. पहला मां विन्ध्यवासिनी, दूसरा मां काली और तीसरा मां सरस्वती, जिन्हें अष्टभुजा के रुप में भी जाना जाता है. खास बात यह है कि मां के तीनों रुप एक त्रिकोण पर विराजमान है, जिनकी परिक्रमा  व विधि-विधान से पूजा कर लेने मात्र से भक्त न सिर्फ मोक्ष को प्राप्त होता है बल्कि लौकिक व अलौकिक सुखों को भोगता है. मंदिर पसिसर में ही स्थित हवन कुंड बारहों महीने अखंड ज्योति के रुप में जलता रहता है. मान्यता है कि यहां आने वाले लोगों के असंभव कार्य भी मां विंध्यवासिनी के दर्शन से पूरे हो जाते हैं. 

मां विंध्यवासिनी के दरबार में होती हैं 4 आरतियां :

विंध्याचल में मां विध्यावासनी की चार आरती सभी भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती है. माना जाता है कि बारह शक्ति पीठ में मां विन्ध्वासनी की चार आरती होती है. जबकि अन्य सभी पीठ में तीन आरती ही होती है. कहा जाता है मां विंध्यवासनी की होने वाली चारों आरती का अपना अलग ही महत्व है.. मां के इस चारों आरती के दर्शन करते ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.  मां की होने वाली चारों आरती का स्वरूप अलग -अलग होता है. जिसमें मंगला आरती, दरबार आरती, राजश्री आरती और देव आरती है. इन चारों आरती के दर्शन करने के अलग-अलग महत्व है. आरती के समय मंदिर के कपाट बंद होने के कारण भक्तों को इसका दर्शन नहीं हो पाता |

कैसे पहुंचें यहाँ :

बाय एयर :

सबसे निकटतम हवाई अड्डा लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, बाबतपुर में, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, जो लगभग माही विंध्यवासिनी मंदिर, विंध्याचल से लगभग 72 किलोमीटर हैं।

ट्रेन द्वारा :

नजदीकी रेलवे स्टेशन ‘विंध्याचल’ (भारतीय रेलवे कोड-बीडीएल) है, लगभग एक किलोमीटर मा विंध्यवासिनी मंदिर, विंध्याचल से है। ‘विंध्याचल’ रेलवे स्टेशन बहुत व्यस्त दिल्ली-हावड़ा मार्ग और मुंबई-हावड़ा मार्ग पर स्थित है। हालांकि सभी नहीं, लेकिन उचित ट्रेनों की संख्या ‘विंध्याचल’ रेलवे स्टेशन पर रुकती है। ट्रेनों के अधिक विकल्पों के लिए, रेलवे स्टेशन ‘मिर्जापुर’ (भारतीय रेलवे कोड-एमजेडपी) चुनें, मा विंध्यवासिनी मंदिर, विंध्याचल से लगभग नौ किलोमीटर।

सड़क के द्वारा :

सड़क से विंध्याचल तक पहुंचने का सबसे सुविधाजनक तरीका राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (एनएच 2) के माध्यम से है, जिसे दिल्ली-कोलकाता रोड के रूप में जाना जाता है। नेशनल हाईवे 2 (एनएच 2) रोड पर, जो एशियाई राजमार्ग 1 (एएच 1) का संयोग है, गोपीगंज या औरई में, इलाहाबाद और वाराणसी के बीच दोनों जगहों पर, पवित्र नदी गंगा पार करने के बाद, शास्त्री पुल के माध्यम से, राज्य राजमार्ग 5 के माध्यम से, आप आसानी से विंध्याचल तक पहुंच सकते हैं

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माँ शारदा के लाइव दर्शन करने के लिए यहाँ क्लिक करे|

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