Nihang Sikh कौन होते हैं?
Nihang Sikh कौन होते हैं- सिंघु बॉर्डर पर 35 साल के एक शख्स की निर्मम हत्या के मामले में शुक्रवार 15 अक्टूबर को निहंग सरबजीत सिंह ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया | किसानों के विरोध प्रदर्शन के मुख्य मंच के पास युवक का शव बैरिकेड्स से लटका मिला | उसके हाथ कटे थे | संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया है कि इस हत्या के पीछे निहंग सिख हैं |
संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि घटनास्थल के एक निहंग ग्रुप ने जिम्मेवारी ली है, और यह कहा है कि ऐसा उस व्यक्ति द्वारा सरबलोह ग्रंथ की बेअदबी करने की कोशिश के कारण किया गया | इस हत्या के बाद निहंग सिख चर्चा में आ गए हैं | आइये जानते हैं कौन होते हैं ये निहंग सिख |
निहंग शब्द आया कहां से:-
दरअसल, निहंग फारसी का शब्द है, जिसका अर्थ मगरमच्छ, कमल और तलवार होता है | लेकिन इनकी विशेषता संस्कृत के शब्द निशंक से ज्यादा मिलती जुलती मालूम पड़ती है जिसका अर्थ निडर और शुद्ध होता है | जानकारी के मुताबिक, सिखों के सबसे आक्रामक तबके को ये नाम मुगलों ने दिया था | इसके पीछे मान्यता ये मानी जाती है कि जिस तरह से पानी में मगरमच्छ को हराना मुश्किल होता है, ठीक उसी तरह युद्ध में निहंगों को मात देना आसान काम नहीं है |
निहंग सिखों को ऐसा लड़ाका बनाने का श्रेय सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह को जाता है | गुरु गोविंद सिंह के चार बेटे थे | अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह | फतेह सिंह सबसे छोटे बेटे थे | माना जाता है कि एक बार तीनों बड़े भाई आपस में युद्ध का अभ्यास कर रहे थे |
इसी दौरान फतेह सिंह भी वहां पहुंचे और युद्ध कला सीखने की इच्छा जताई | इस पर बड़े भाइयों ने उनसे कहा कि अभी आप छोटे हैं और जब बड़े हो जाओगे तब ये सीख लेना |
कहा जाता है कि अपने तीनों बड़े भाइयों की इस बात पर फतेह सिंह नाराज हो गए | वो घर के अंदर गए और एक हाथ ऊंचा दुमाला (दस गज या उससे ज़्यादा लंबे कपड़े की पग) सिर पर बांधा | उस पर चक्कर लगाया (ये गोल चक्र होता है जो निहंग सिख दुमाले पर पहनते हैं) | किरपाण उठाई |
एक हाथ में भाला पकड़ा | उन्होंने अपने भाइयों से कहा कि अब वो लंबाई में तीनों के बराबर हो गए हैं | गुरु गोविंद सिंह ये सब देख रहे थे | फेतह सिंह की बहादुरी से वो प्रभावित हुए और तब जाकर चारों भाइयों को उन्होंने युद्ध कला सिखाई | मान्यता है कि फतेह सिंह ने अपने बड़े भाइयों की बराबरी करने के लिए जो चोला पहना था, वहीं आज के निहंग सिख पहनते हैं | फतेह सिंह ने जो हथियार उठाया था, आज भी निहंग सिख उसी हथियार के साथ दिखते हैं |
निहंग सिख अपने धर्म के लिए हर समय समर्पित होते हैं और आम सिखों को मानवता का विशेष ध्यान रखने की ओर प्रेरित करते रहते हैं | निहंग सिखों के धर्म चिन्ह आम सिखों की अपेक्षा मज़बूत और बड़े होते हैं | जन्म से लेकर जीवन के अंत तक जितने भी जीवन संस्कार होते हैं, सिख धर्म के अनुसार ये उनका प्रेम से निर्वहन करते हैं |
दूसरे सिखों से कैसे अलग हैं:-
सिर्फ युद्ध के मैदान में लड़ना ही इनका काम नहीं था | कुछ नियम-क़ानून ऐसे हैं, जिनसे निहंग खुद को बांधे रखते हैं | उनकी अवहेलना नहीं की जा सकती | इनके ये ख़ास नियम हैं:
- गुरबानी का पाठ करना और ‘बाणे’ में रहना: रोज़ ये गुरबानी का पाठ तो करते ही हैं, साथ ही साथ औरों को भी उसके बारे में बताते चलते हैं | बाणे में रहने का मतलब हमेशा अपना चोला और उसके साथ आने वाले सभी शस्त्र धारण करना | किसी मजबूर, गरीब, या कमज़ोर पर हाथ न उठाना, उसकी रक्षा करना |
- शस्तर (शस्त्र) विद्या: सभी निहंग हथियार चलाने में पारंगत होते हैं | (शस्तर विद्या में पांच महत्वपूर्ण चीज़ें सिखाई जाती हैं, विरोधी पर लपकना, उसके डिफेन्स को कमज़ोर करना, आ रहे अटैक को रोकना, वार करने के लिए सबसे सही जगह चुनना, और आखिर में वार करना |)
- निहंग सिख आदि ग्रंथ साहिब (गुरु ग्रन्थ साहिब) के साथ-साथ श्री दशम ग्रन्थ साहिब और सरबलोह ग्रन्थ को भी मानते हैं | सरबलोह ग्रन्थ में युद्ध और शस्त्र विद्या से जुड़ी सीखें हैं | इसे वीर रस से जोड़कर देखा जाता है | इनके गुरुद्वारों में गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ श्री दशम ग्रन्थ साहिब भी सुशोभित होते हैं | साथ ही जो मुख्य पांच तख़्त हैं सिख धर्म के, वहां भी श्री दशम ग्रन्थ साहिब का पाठ होता है |
- इनकी अपनी एक बोली है, जिसमें कुछ ख़ास शब्द और रेफरेंस इस्तेमाल होते हैं | जैसे दूध पीते हैं तो कहते हैं, हमने समंदर पी लिया | कोई सुनने में कमज़ोर होता है तो उसे कहते हैं, ये तो चौमाले पर बैठा है | यानी इतना ऊंचा सुनता है जैसे चौथे माले पर बैठा हो |
- निहंगों में भी दो समूह होते हैं | एक जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है, दूसरा जो गृहस्थ होता है | जो गृहस्थ निहंग होते हैं, इनकी पत्नियां भी वही वेश धारण करती हैं, बच्चे भी | और सभी समूह के साथ ही चलते हैं | एक जगह टिककर नहीं रहते |
- ये छोटे-छोटे समूहों में घूमते रहते हैं | सिख गुरुओं के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं जहां-जहां घटी थीं, वहां का चक्कर लगाते हैं | जैसे ‘माघी’ के दिन (माघ महीने का पहला दिन, 14 या 15 जनवरी को) ये मुक्तसर साहिब जाते हैं | जहां गुरु गोबिंद सिंह ने ‘चाली मुक्ते’ को आशीर्वाद दिया था | (ये वो चालीस सिख थे जो पहले गुरु को छोड़कर चले गए थे | बाद में माता भाग कौर के ललकारने पर शर्मिंदा हुए, और गुरु के लिए अपनी जान दे दी) इसके बाद आनंदपुर साहिब में होली खेलने जाते हैं, जिसे ‘होला मोहल्ला’ कहा जाता है | इसी तरह इनके जत्थे बाकी जगहों पर जाते हैं |
- इनके तीन दल हैं- तरना दल, बिधि चंद दल, और बुड्ढा दल | इनके सबके अलग-अलग मुखिया होते हैं, जिन्हें जत्थेदार कहा जाता है |