Gayatri Jayanti 2022:
पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष गायत्री जयंती ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है | धार्मिक मान्यता के अनुसार गायत्री जयंती, मां गायत्री का जन्मोत्सव है | इसलिए इस दिन उनकी विशेष आराधना की जाती है |
इस एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है | निर्जला एकादशी को सभी एकादशी में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है | गायत्री जयंती के दिन विधि- विधान से गायत्री माता की पूजा- अर्चना करनी चाहिए |
हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में मां गायत्री को वेद माता के नाम से जाना जाता है | मां गायत्री के पांच मुख और दस हाथ हैं | उनके इस रूप में चार मुख चारों वेदों के प्रतीक हैं एवं उनका पांचवा मुख सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है | मां के दस हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं | इतना ही नहीं त्रिदेवों की आराध्य भी मां गायत्री को ही कहा गया है |
गायत्री जयंती का शुभ मुहूर्त:- Gayatri Jayanti 2022
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जून 10, 2022 को प्रातः 07:25 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – जून 11, 2022 को प्रातः 05:45 बजे
कौन हैं गायत्री माता:-
चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं | वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है |
समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहा जाता है | इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है | मां पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है |
कैसे हुआ माता गायत्री का अवतरण:-
माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ | मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की|
आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पंहुचाया |
कैसे हुआ माता गायत्री का विवाह:-
कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा यज्ञ में शामिल होने जा रहे थे | मान्यता है कि यदि धार्मिक कार्यों में पत्नी साथ हो तो उसका फल अवश्य मिलता है लेकिन उस समय किसी कारणवश ब्रह्मा जी के साथ उनकी पत्नी सावित्री मौजूद नहीं थी इस कारण उन्होंनें यज्ञ में शामिल होने के लिए वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लिया |
गायत्री जयंती का महत्व:-
सनातन धर्म में गायत्री जयंती का बहुत अधिक महत्व माना गया है | मान्यता है कि मां गायत्री से ही चारों वेदों की उत्पत्ति मानी गई है | कहते हैं कि गायत्री जयंती के दिन विधि-विधान के साथ जो साधक पूजा करते हैं उसे वेदों वेदों के अध्ययन करने के समान फल की प्राप्ति होती है |
शिक्षा प्राप्त करने वाले और आध्यात्मिक अध्यापन करने वालों के लिए यह दिन अतिउत्तम रहता है | इस दिन गायत्री मंत्र के जाप का विशेष महत्व होता है |
गायत्री जयंती की पूजा-विधि:-
- गायत्री जयंती के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें |
- वस्त्र धारण करने के बाद मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें |
- इसके बाद मां गायत्री और समस्त देवी-देवताओं को प्रणाम करें व दीप प्रज्वलित करें |
- मां गायत्री का ध्यान करते हुए पुष्प अर्पित करें |
- इसके बाद आसन लगाकर वहीं पर गायत्री मंत्र का जाप करें |
- जाप पूर्ण हो जाने के पश्चात मां को भोग लगाएं |
FAQ’s:-
गायत्री माता का जन्म कैसे हुआ?
ब्राह्मण ऋक् है, क्षत्री यजु: है, वैश्य अथर्व है, शूद्र साम | इस प्रकार यह चतुर्विध विभागीकरण हुआ | यह चारों प्रकार के ज्ञान उस एक चैतन्य शक्ति के ही प्रस्फुरण हैं, जो सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्माजी ने उत्पन्न की थी और जिसे शास्त्रकारों ने गायत्री नाम से सम्बोधित किया है | इस प्रकार चारों वेदों की माता गायत्री हुई |
गायत्री का जन्म कब हुआ?
गायत्री जयंती दो जून को मनाई जाएगी | इस दिन गायत्री माता के जन्म हुआ था और धार्मिक मान्यता के गायत्री माता के जन्म में ब्रह्माजी मुख का विशेष योगदान रहा है | शास्त्रों में देवी गायत्री को वेद माता के नाम से भी जाना गया है और उन्हें ये नाम इसलिए मिला क्योंकि वेदों की उत्पत्ति का कारण देवी ही हैं |
गायत्री जयंती क्या है?
पूर्व काल में कई बार ऋषियों ने पाया कि अनाड़ी साधकों द्वारा गायत्री मंत्र का जाप करने से मानसिक अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो रही है | इसके दुरुपयोग से पीढ़ियां बिगड़ने लगीं. तो उन्हें कठोर कदम उठाने पड़े | उन्होंने गायत्री मंत्र को श्रापित (प्रभावहीन) कर दिया |
गायत्री माता का वाहन क्या है?
इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है | इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है | इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है | मध्याह्न काल में इनका युवा स्वरूप है |