मां चंद्रघंटा:-

नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा मां के चंद्रघंटा रूप की पूजा की जाती है | नौ दिनों तक चलने वाली नवरात्रि के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है | मां चंद्रघंटा राक्षसों का वध करने के लिए जानी जाती हैं | मान्यता है कि वह अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं इसलिए उनके हाथों में धनुष, त्रिशूल, तलवार और गदा होता है | चंद्रघंटा माता का शिवदूती स्वरूप है | इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है | इनका रंग सोने के समान चमकीला है | इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने जैसी है | इनके घंटे की भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव, दैत्य आदि सभी डरते हैं | असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था |

देवी मां के पावन दिन का पर्व शारदीय नवरात्रि आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को 26 सितम्बर 2022 से आरंभ होगा |अक्टूबर तक चलने वाले इन दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है | अक्टूबर को धूमधाम के साथ विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा | इसी दिन दुर्गा विसर्जन भी किया जाएगा | शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों का बखान किया गया है | नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है | मान्यता है कि मां दुर्गा अपने भक्तों के हर कष्ट हर लेती हैं |

चंद्रघंटा माता का स्वरूप देवी पार्वती के सुहागन रूप को दर्शाता है | भगवान शिव से विवाह के बाद पार्वती देवी ने अपने माथे पर आधा चंद्रमा धारण करना शुरू कर दिया जिसके कारण उनके इस रूप को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाने लगा | माता चंद्रघंटा ने अपने माथे पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा धारण किया हुआ है, चंद्रघंटा माता की 10 भुजाएं हैं, जिनमें से 8 भुजाओं में कमल, कमंडल और विभिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं |

चंद्रघंटा माता की कथा:-

देवताओं और असुरों के बीच लंबे समय तक युद्ध चला | असुरों का स्‍वामी महिषासुर था और देवाताओं के इंद्र | महिषासुर ने देवाताओं पर विजय प्राप्‍त कर इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और स्‍वर्गलोक पर राज करने लगा | इसे देखकर सभी देवतागण परेशान हो गए और इस समस्‍या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्र‍िदेव ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश के पास गए | देवताओं ने बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और अन्‍य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और उन्‍हें बंधक बनाकर स्‍वयं स्‍वर्गलोक का राजा बन गया है |

देवाताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्‍याचार के कारण अब देवता पृथ्‍वी पर विचरण कर रहे हैं और स्‍वर्ग में उनके लिए स्‍थान नहीं है | यह सुनकर ब्रह्मा, विष्‍णु और भगवान शंकर को अत्‍यधिक क्रोध आया | क्रोध के कारण तीनों के मुख से ऊर्जा उत्‍पन्‍न हुई | देवगणों के शरीर से निकली ऊर्जा भी उस ऊर्जा से जाकर मिल गई | यह दसों दिशाओं में व्‍याप्‍त होने लगी |

तभी वहां एक देवी का अवतरण हुआ | भगवान शंकर ने देवी को त्र‍िशूल और भगवान विष्‍णु ने चक्र प्रदान किया | इसी प्रकार अन्‍य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्‍त्र शस्‍त्र सजा दिए | इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतरकर एक घंटा दिया | सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और सवारी के लिए शेर दिया | देवी अब महिषासुर से युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार थीं | उनका विशालकाय रूप देखकर महिषासुर यह समझ गया कि अब उसका काल आ गया है | महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा | अन्‍य दैत्य और दानवों के दल भी युद्ध में कूद पड़े |

देवी ने एक ही झटके में ही दानवों का संहार कर दिया | इस युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्‍य बड़े दानवों और राक्षसों का संहार मां ने कर दिया | इस तरह मां ने सभी देवताओं को असुरों से अभयदान दिलाया |

पूजा विधि:-

नवरात्रि के तीसरे दिन माता दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की​ विधि विधान से इस मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

ऊँ चं चं चं चंद्रघंटायेः ह्रीं नम:।

का जाप कर आराधना करनी चाहिए | इसके बाद मां चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत्, गंध, धूप, पुष्प आदि अर्पित करें | आप देवी मां को चमेली का पुष्प अथवा कोई भी लाल फूल अर्पित कर सकते हैं | साथ ही साथ, दूध से बनी किसी मिठाई का भोग लगाएं | पूजा के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ और दुर्गा आरती का गान करें |

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