PM Narendra Modi का 71वां जन्मदिन:

Narendra Modi भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म देश को आजादी मिलने के बाद हुआ | आज वही नरेंद्र दामोदर दास मोदी 71 बरस के हो गए | प्रधानमंत्री के रूप में मोदी कई रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं | वो सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले पहले गैर कांग्रेसी नेता हैं | आज वो प्रधानमंत्री के रूप में 7 साल 113 दिन पूरे कर लेंगे | लगातार दो बार बहुमत के साथ गैर कांग्रेसी सरकार बनाने का श्रेय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है |

बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी पर अमेरिका आने की रोक लगाई गई थी तो 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद वो सबसे ज्यादा 7 बार अमेरिका जाने वाले प्रधानमंत्री बन गए | 24 सितंबर को वो 8वीं बार अमेरिका का दौरा करेंगे | बीजेपी इस दौरान पीएम मोदी के सार्वजनिक कार्यालय में दो दशक पूरा करने का जश्न भी मनाएगी | पीएम मोदी 13 साल तक गुजरात के सीएम रहे और अब 7 साल से पीएम हैं |

कोविड-19 (Covid-19) के खिलाफ 21 जून को 88.09 लाख और 27 अगस्त को 1.03 करोड़ के रिकॉर्ड टीकाकरण के बाद आज पीएम मोदी के 71वें जन्मदिन  पर भी रिकॉर्ड वैक्सीनेशन का लक्ष्य रखा गया है | इस मौके पर 20 दिन की मेगा इवेंट करवाई जा रही है, जिसका नाम है सेवा और समर्पण अभियान | ये अभियान 7 अक्टूबर को खत्म होगा |

इसके अलावा जन्मदिन के मौके पर देशभर में रिकॉर्ड डेढ़ करोड़ कोरोना के टीके लगाने की तैयारी की गई है | इसके साथ ही कई जगह बल्ड डोनेशन कैंप लगाए गए हैं | साथ ही बीजेपी इस दौरान पीएम मोदी के सार्वजनिक कार्यालय में दो दशक पूरा करने का जश्न भी मनाएगी | 7 अक्टूबर तक चलने वाले 20-दिवसीय मेगा कार्यक्रम के दौरान पार्टी बड़े पैमाने पर स्वच्छता और रक्तदान अभियान चलाएगी | प्रधानमंत्री को उनके प्रयासों के लिए बधाई देने के लिए पांच करोड़ पोस्टकार्ड भेजेगी | उत्तर प्रदेश में, जहां अगले साल चुनाव होने हैं, वहां पार्टी कार्यकर्ता 71 स्थानों पर गंगा नदी को साफ करने के लिए अभियान चलाएंगे |

PM मोदी के जीवन से जुड़ी अनसुनी कहानियां:- Narendra Modi

श्यामजी कृष्ण वर्मा से जुड़ी अनसुनी कहानी:

स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा, विदेशी धरती पर भारतीय क्रांतिकारियों का सबसे बड़ा मददगार, मेंटर जिसकी अस्थियां लेने के लिए मोदी स्विटजरलैंड गए, इतना ही नहीं उनकी याद में एक शानदार इमारत भी उन्हीं के गांव में बनाई | श्यामजी कृष्ण वर्मा ने अपने जीवन भर की कमाई से लंदन में ‘इंडिया हाउस’ बनवाया था और भारतीय क्रांतिकारी युवाओं को लंदन में पढ़ने के लिए कई सारी स्कॉलरशिप्स शुरू कीं, उनको इंडिया हाउस में वो रुकने का ठिकाना देते थे | उनकी स्कॉलरशिप से ही वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारी लंदन पहुंचे | मदन लाल धींगरा जैसे कई क्रांतिकारियों को वहां शरण मिली और वहीं से सावरकर ने इंग्लैंड और यूरोप के क्रांतिकारियों को एकजुट किया और भारत के क्रांतिकारियों को तमाम तरह की मदद की |

श्यामजी कृष्ण वर्मा 1907 में सावरकर को इंडिया हाउस की जिम्मेदारी देकर पेरिस निकल गए और प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस और ब्रिटेन की दोस्ती हो गई तो वहां से पत्नी भानुमति के साथ वो स्विटजरलैंड चले आए, वहां उन्होंने एक अस्थि बैंक ‘सेंट जॉर्ज सीमेट्री’ में फीस जमा करवाकर उनसे अनुबंध किया कि वो पति-पत्नी दोनों की अस्थियों को संभालकर रखेंगे, आजादी के बाद कोई देशभक्त आएगा और उनकी अस्थियां देश की सरजमीं पर ले जाएगा | लेकिन आजादी के बाद आई सरकारें उन्हें भूल गईं | 22 अगस्त 2003 को लगभग 56 साल बाद मोदी जेनेवा से उन दोनों की अस्थियां लेकर आए | तब वो गुजरात के सीएम थे |

फिर श्यामजी कृष्ण वर्मा के जन्मस्थान मांडवी में उनकी याद में वैसा ही इंडिया हाउस बनवाया, जिसे नाम दिया गया ‘क्रांति तीर्थ’ | लोग मानते हैं कि पीएम मोदी का दाढ़ी वाला लुक श्यामजी कृष्ण वर्मा से ही प्रेरित है, सच मोदी बेहतर जानते हैं | आप ये जानकर हैरत में होंगे कि जब 30 मार्च 1930 को श्यामजी की मृत्यु हुई थी, तो भगत सिंह ने लाहौर जेल में साथियों के साथ शोक सभा रखी थी |

राजा महेंद्र प्रताप से जुड़ी अनसुनी कहानी:-

एक अनोखा किस्सा जो जुड़ा है जाट राजा महेंद्र प्रताप, यूपी में हाथरस के मुरसान निवासी से | जिस जाट राजा ने अटल बिहारी बाजपेयी जैसे दिग्गज भाजपा नेता को इतनी बड़ी शिकस्त दी थी, कि लोकसभा चुनावों में वोटों की गिनती में वे नंबर वन आए थे , उस चुनाव में अटलजी की जमानत जब्त हो गई थी और वो चौथे नंबर पर आए थे | इस जाट राजा की मोदी खुलकर तारीफ करते हैं, वो भी काबुल की संसद में |

राजा महेंद्र प्रताप आजकल इसलिए चर्चा में रहते हैं क्योंकि अब लोगों को पता चला है कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के लिए अपनी जमीन 99 साल के लिए पट्टे पर दी थी | लेकिन देश के इतिहास में राजा को इसलिए जाना जाता है क्योंकि उन्होंने पहली बार देश की अनिर्वासित सरकार का ऐलान किया था, ये सरकार अफगानिस्तान के काबुल में बनाई गई थी | बाकायदा कैबिनेट मंत्रियों के साथ पूरी सरकार बनाई गई थी, जिसके राष्ट्रपति वो खुद थे | नोबेल पुरस्कार के इतिहास में 2 ही बार ऐसा मौका आया है, जब वो स्थगित हुए हैं, एक बार महात्मा गांधी को नॉमिनेट किया गया था, दूसरी बार राजा महेंद्र प्रताप को |

आजादी के बाद राजा महेंद्र प्रताप मथुरा लोकसभा सीट से 1952 में निर्दलीय जीते थे, 1957 में उनके सामने युवा जनसंघ नेता अटल बिहारी बाजपेयी थे, राजा दोबारा जीते और अटलजी चौथे नंबर पर आए | संयोग देखिए, 25 दिसंबर 2015 को अटल बिहारी बाजपेयी का जन्मदिन था, मोदी काबुल की संसद में जाकर ‘अटल ब्लॉक’ का उदघाटन करते हैं और संसद में अपने भाषण में अटलजी के जन्मदिन के मौके पर उनको हराने वाले राजा महेंद्र प्रताप की जमकर तारीफ करते हैं | फिर लौटते हुए पाकिस्तान में नवाज शरीफ का जन्मदिन भी मनाते हैं, लेकिन शायद उस वक्त उनको भी अटलजी का राजा महेंद्र प्रताप से कनेक्शन नहीं पता था |

सेवा भारती प्रताप से जुड़ी अनसुनी कहानी:-

आप राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ को हमेशा राजनीतिक संगठन के रूप में देखते आए हैं, लेकिन इसी आरएसएस ने जब कोरोना काल के दौरान अपने सेवा कार्यों के आंकड़े बताए तो लोग हैरान रह गए, प्रतिदिन संघ कार्यकर्ता लाखों लोगों को खाना पहुंचा रहे थे, दवाइयां, मास्क, राशन आदि भी | करीब 20 तरह की हैल्पलाइन उन्होंने शुरू की थीं, स्टूडेंट्स, बुजर्ग, महिला और यहां तक कि भूखे जानवरों तक के लिए हैल्पलाइन |

दरअसल, संघ का संगठन है सेवा भारती, आज भी उनकी वेबसाइट देखेंगे तो वर्तमान में चल रहे पूरे 2 लाख सेवाकार्यों की जानकारी पाएंगे | लेकिन इतने बड़े संगठन की नींव रखने से मोदी जुड़े हैं, ये बहुत कम लोग जानते हैं | ये 1979 की बात है, जब मोरवी (गुजरात) में मच्छू नदी पर बने बांध में दरार आ गई, बांध टूट गया और भयंकर बाढ़ आ गई | उस दौरान करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई थी, नरेंद्र मोदी उस दिन चेन्नई में थे | फौरन दिल्ली आए, वहां से वाया मुंबई राजकोट पहुंचे | दिल्ली में उन्होंने उन दिनों संघ के वरिष्ठ नेता नानाजी देशमुख से मुलाकात की और चर्चा की कि कैसे सेवा कार्यों के लिए संघ को संगठित तौर से करना चाहिए |

उस बाढ़ के लिए तो एक बाढ़ राहत समिति बनाई ही गई, ट्रस्ट को रजिस्टर्ड करवाया गया और 50 लाख रुपए का चंदा इकट्ठा किया गया | ये सब नरेंद्र मोदी ने किया. बाढ़ पीड़ितों की तमाम तरीके से मदद के अलावा मोरबी में उनके लिए एक कॉलोनी भी बनवाई गई | ये वो योजना थी, जिसे बाद में संघ ने सेवा भारती जैसा संगठन बनाकर अपना लिया | आज संघ से बिना स्वार्थ के इतने स्वंयसेवक जुड़े रहते हैं, तो काफी कुछ वजह सेवा भारती के लगातार गरीबों के लिए चलने वाले सेवा कार्य ही हैं |

RSS सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से जुड़ी अनसुनी कहानी:-

नरेंद्र मोदी के जीवन की ये पहली बड़ी घटना थी, जिससे वो सीधे राष्ट्रीय पदाधिकारियों की नजर में आ गए थे | संघ परिवार में सबसे ज्यादा ताकतवर पदाधिकारी होते हैं सरसंघचालक | उन दिनों गुरु गोलवलकर आरएसएस के सरसंघचालक थे | विश्व हिंदू परिषद को 1964 में शुरू किया गया था, ऐसे में उस संगठन को खड़ा करने में संघ के बड़े पदाधिकारी भी जुटे हुए थे | उन्हीं दिनों 1972 में विश्व हिंदू परिषद का विशाल सम्मेलन होना था, जो गुजरात के सिद्धपुर में होना तय हुआ था |

उस सम्मेलन के आयोजन से जुड़े थे नरेंद्र मोदी | व्यवस्था की काफी जिम्मेदारी थी नरेंद्र मोदी की, उस सम्मेलन में चार शंकराचार्यों को एक साथ लाना और सरसंघचालक गुरु गोलवलकर की नजरों में चढ़ना, आसान काम नहीं था, लेकिन मोदी ने ये कर दिखाया | पहली बार इस सम्मेलन के जरिए नरेंद्र मोदी संघ के वरिष्ठतम अधिकारियों की नजरों में आए थे | मोदी को आज भले ही विरोधी उन्हें ‘इवेंट मैनेजर’ कहते हों, लेकिन देखा जाए तो ढंग से व्यवस्था करना, वो भी समय से आसान काम थोड़े ही होता है, वो भी तब जब हजारों व्यक्ति उस आयोजन से जुड़े हों |

मोदी बने इतिहासकार:-

इमरजेंसी के दिनों में नरेंद्र मोदी भी सक्रिय थे, सिख के रोल में आपने उनकी फोटो देखी ही होगी | इमरजेंसी में संघ, जनता पार्टी और बाकी विपक्षी नेताओं की एक कॉर्डिनेशन कमेटी बनाई गई, नरेंद्र मोदी को गुजरात का सचिव बनाया गया था | मोदी के जिम्मे 2 काम थे, एक ऐसे सेफ हाउसेज को ढूंढना, जिसमें दिल्ली से आ रहे बड़े नेताओं को ठहराना, छुपाना और दूसरा काम था संघ के जो कार्यकर्ता जेलों में ठूंस दिए गए थे, उनके परिजनों को आर्थिक मदद देना, दिलासा देना |

मोदी ने दोनों ही काम बड़ी तत्परता से किए | इसलिए वो खुद गिरफ्तारी से बचते रहे, उन्होंने इसलिए ही सिख रूप लिया था, सिख रूप में ही सुब्रह्मण्यम स्वामी को भी ठहराया, जॉर्ज फर्नांडीज को भी गुजरात में मदद की | तमाम जेल में बंद कार्यकर्ताओं के परिजनों को भी मदद पहुंचाते रहे | उसके बाद उन्होंने योजना बनाई एक किताब लिखने की, उस किताब के लिए वो दिल्ली भी आए और यहां भी शोध किया, किताब का नाम था, ‘आपात काल में गुजरात’ | इसी लगन के चलते वो दिल्ली के राष्ट्रीय नेताओं के करीब आ गए थे |

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