करतारपुर साहिब गुरुद्वारा:-

गुरु नानक देवजी के 550वीं जयंती के मद्देनजर भारत- पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर (पाकिस्तान) को खोला जाएगा | इस कॉरिडोर के खोले जाने से भारतीय सिख बिना वीजा के गुरुद्वारे में मत्था टेक सकेंगे | सिख समुदाय पिछले 70 साल से दर्शन के लिए वीजा-फ्री कॉरिडोर खोलने की मांग कर रहा था |

कॉरिडोर खोले जाने के बाद श्रद्धालुओं को सीमा पर स्लिप दी जाएगी, जिसके आधार पर वे करतारपुर साहिब तक आसानी से पहुंच सकेंगे और मत्था टेक कर शाम तक वापस लौट सकेंगे |

करतारपुर साहिब गुरुद्वारा से जुड़े रोचक तथ्य:-

करतारपुर साहिब गुरुद्वारा
  • गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर सिख धर्म का वह पवित्र धार्मिक स्थल है जहां इस धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी एन अपनी अंतिम सांसें ली थीं |
  • सिख इतिहास के मुताबिक जीवनभर का ज्ञान बटोरने के बाद गुरु नानक करतारपुर के इसी स्थान पर आए और जीवन के अंतिम 18 वर्ष उन्होंने यहीं बिताए |
  • इसी जगह पर उन्होंने लोगों को अपने साथ जोड़ा और उन्हें एकेश्वर्वाद का महत्व समझाया | उन्होंने यह उपदेश दिया कि पूरी दुनिया का कर्ता-धर्ता केवल एक अकाल पुरख है | वह अकाल पुरख निरंकार (निर-आकार) है |
  • गुरु नानक ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को कुछ पन्नों की एक पोथी का रूप दिया और उसे अगले गुरु के हाथों सौंप दिया था | इन पन्नों में आगे के गुरुओं द्वारा और भी रचनाएं जुड़ीं और अंत में सिखों के धार्मिक ग्रन्थ की रचना की गई |
  • गुरु नानक ने 22 सितंबर, 1539 को इस स्थान पर अपनी अंतिम सांसें लीं कहते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद किसी को भी उनका शव नहीं मिला | शव की बजाय कुछ फूल हासिल हुए जिन्हें हिन्दुओं ने जला दिया और मुस्लिम भाईयों ने दफन कर दिया |
  • भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद लाखों सिख पाकिस्तान से भारत आ गए, तब यह गुरुद्वारा वीरान पड़ गया | मगर कुछ सालों बाद नानक के मुस्लिम श्रद्धालुओं ने इसे संभाला | वे यहां दर्शन के लिए आने लगे और इसकी देख-रेख करने लगे | पाकिस्तान के सिखों के लिए गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर उनके प्रथम गुरु का धार्मिक स्थल है तो वहीं यहां के मुस्लिमों के लिए यह उनके पीर की जगह है |
  • वर्षों बाद पाकिस्तान सरकार की भी इस जगह पर नजर पड़ी | गुरुद्वारा दरबार साहिब के नवीनीकरण पर काम किया गया | मई, 2017 में एक अमेरिकी सिख संगठन की मदद से गुरूद्वारे के आसपास बड़ी गिनती में पेड़ लगाने का काम भी किया गया |
  • यह गुरुद्वारा भारत में पाकिस्तानी सीमा से 100 मीटर दूरी पर स्थित डेरा बाबा नानक से दूरबीन की सहायता से दिखाई देता है। दूरबीन से गुरुद्वारा दरबार साहिब के दर्शन का यह काम CRPF की निगरानी में किया जाता है |
  • करतारपुर गुरुद्वारे के अंदर एक कुआं है। माना जाता है कि यह कुआं गुरुनानक देवजी के समय से है। साथ ही इस कुएं को लेकर श्रद्धालुओं में काफी मान्यता हैं। कहा जाता है सबसे पहले लंगर की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। नानक साहब के यहां जो भी आता था, वह उन्हें बिना खाए जाने नहीं देते थे |
  • सिख समुदाय के लोग भारत के अलग-अलग प्रांत से भारत-पाक बॉर्डर के पास आते थे और दूरबीन की साहयता से गुरुद्वारे के दर्शन कर खुद को धन्य मानते थे। श्रद्धालुओं की भावनाओं के देखते हुए भारतीय फौज ने यहां दर्शन स्थल बना दिया है, जिससे वह आसानी से दर्शन कर सकें |

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